अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 47
ऋषिः - सिन्धुद्वीपः
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
42
सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा। वि॒द्युर्मे॑ अ॒स्य दे॒वा इन्द्रो॑ विद्यात्स॒ह ऋषि॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । मा॒ । अ॒ग्ने॒ । वर्च॑सा । सृ॒ज॒ । सम् । प्र॒ऽजया॑ । सम् । आयु॑षा । वि॒द्यु: । मे॒ । अ॒स्य । दे॒वा: । इन्द्र॑: । वि॒द्या॒त् । स॒ह । ऋषि॑ऽभि: ॥५.४७॥
स्वर रहित मन्त्र
सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा। विद्युर्मे अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । मा । अग्ने । वर्चसा । सृज । सम् । प्रऽजया । सम् । आयुषा । विद्यु: । मे । अस्य । देवा: । इन्द्र: । विद्यात् । सह । ऋषिऽभि: ॥५.४७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(अग्ने) हे विद्वान् ! (मा) मुझको (वर्चसा) [ब्रह्मविद्या के] तेज से (सम्) अच्छे प्रकार, (प्रजया) प्रजा से (सम्) अच्छे प्रकार, और (आयुषा) जीवन से (सम् सृज) अच्छी प्रकार संयुक्त कर। (देवाः) विद्वान् लोग (अस्य) इस (मे) मुझको (विद्युः) जानें, (इन्द्रः) बड़ा ऐश्वर्यवान् आचार्य (ऋषिभिः सह) ऋषियों के साथ [मुझे] (विद्यात्) जाने ॥४७॥
भावार्थ
मनुष्य उत्तम विद्या पाकर संसार के सुधार से अपना जीवन सफल करके विद्वानों और गुरुजनों में प्रतिष्ठा पावें ॥४७॥ यह मन्त्र आचुका है-अ० ७।८९।२ ॥
टिप्पणी
४७−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।८९।२ ॥
भाषार्थ
(अग्ने) हे अग्रणी प्रधानमन्त्रिन् ! (मा) मेरा (वर्चसा) वर्चस् के साथ (सं सृज) संसर्ग कर, (प्रजया) सन्तान के साथ (सम्) संसर्ग कर, (आयुषा) स्वस्थ और दीर्घ आयु के साथ (सम्) संसर्ग कर। (मे) मेरे (अस्य) इस काम को (देवाः) सार्वभौम विद्वान् (विद्युः) जानें, (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सम्राट् या सार्वभौमशासक, (ऋषिभिः सह) ऋषियों या ऋषिकोटि के अमात्यों सहित, [मेरे इस काम को] (विद्यात्) जाने।
टिप्पणी
[मन्त्र ४६, ४७ का परस्पर सम्बन्ध है। 'वर्चसा (मन्त्र ४६)। अस्य मे = मेरे काम अर्थात् प्रभूत दुग्ध से सम्पन्न होना, और कृषि कर्म में समृद्धि। दूध और कृषिकर्म की समृद्धि होने पर सन्तानों का पालन-पोषण होता है, तथा इन के सेवन से आयु भी बढ़ती है]।
विषय
विजिगीषु राजा के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
इन दोनों मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्व० [ कां० ७। ८६। १,२ ]।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-२४ सिन्धुद्वीप ऋषिः। २६-३६ कौशिक ऋषिः। ३७-४० ब्रह्मा ऋषिः। ४२-५० विहव्यः प्रजापतिर्देवता। १-१४, २२-२४ आपश्चन्द्रमाश्च देवताः। १५-२१ मन्त्रोक्ताः देवताः। २६-३६ विष्णुक्रमे प्रतिमन्त्रोक्ता वा देवताः। ३७-५० प्रतिमन्त्रोक्ताः देवताः। १-५ त्रिपदाः पुरोऽभिकृतयः ककुम्मतीगर्भा: पंक्तयः, ६ चतुष्पदा जगतीगर्भा जगती, ७-१०, १२, १३ त्र्यवसानाः पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहत्यः, ११, १४ पथ्या बृहती, १५-१८, २१ चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुव् गर्भा अतिधृतयः, १९, २० कृती, २४ त्रिपदा विराड् गायत्री, २२, २३ अनुष्टुभौ, २६-३५ त्र्यवसानाः षट्पदा यथाक्ष शकर्योऽतिशक्वर्यश्च, ३६ पञ्चपदा अतिशाक्कर-अतिजागतगर्भा अष्टिः, ३७ विराट् पुरस्ताद् बृहती, ३८ पुरोष्णिक्, ३९, ४१ आर्षी गायत्र्यौ, ४० विराड् विषमा गायत्री, ४२, ४३, ४५-४८ अनुष्टुभः, ४४ त्रिपाद् गायत्री गर्भा अनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्। पञ्चशदर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
Hey Agni, bless me with honour and lustre, bless me with progeny, with good health and full age. Let the divines know of me thus, let Indra know of me along with the holy sages.
Translation
O fire-divine, please unite me with all dignity (varcas). May I have children, living a full span of life. May I have good approach to people of enlightenment. May our king or the resplendent authority know me well; and may all the saints and sears know me. (Also Av. VII.89.2)
Translation
O self-refulgent God! please grant me the boon of splendid. strength, give me progeny and give me life. All the learned men grace me with this and let the King with other seets. grant me this.
Translation
Give me the boon of splendid strength, O learned person, give progeny and life! May the learned know this prayer of mine, may the preceptor with the sages know.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४७−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।८९।२ ॥
हिंगलिश (1)
Subject
Significance of Agnihotra
Word Meaning
सब सम्राट, ऋषि कोटि के अमात्य,प्रजाजन संतान यह जानें कि अग्निहोत्र के संसर्ग से वर्चस्व और स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त होते हैं |
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