अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 26
ऋषिः - कौशिकः
देवता - विष्णुक्रमः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
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विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हान्तरि॑क्षसंशितो वा॒युते॑जाः। अ॒न्तरि॑क्ष॒मनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहं अ॒न्तरि॑क्षा॒त्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥
स्वर सहित पद पाठविष्णो॑: । क्रम॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । अ॒न्तरि॑क्षऽसंशित: । वा॒युऽते॑जा: । अ॒न्तरि॑क्षम् । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । अ॒न्तरि॑क्षात् । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहान्तरिक्षसंशितो वायुतेजाः। अन्तरिक्षमनु वि क्रमेऽहं अन्तरिक्षात्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥
स्वर रहित पद पाठविष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । अन्तरिक्षऽसंशित: । वायुऽतेजा: । अन्तरिक्षम् । अनु । वि । क्रमे । अहम् । अन्तरिक्षात् । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.२६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
तू (विष्णोः) विष्णु [सर्वव्यापक परमेश्वर] से (क्रमः) पराक्रमयुक्त, (सपत्नहा) वैरियों का नाश करनेहारा, (अन्तरिक्षसंशितः) अन्तरिक्ष [मध्य लोक] से तीक्ष्ण किया गया, (वायुतेजाः) प्राण आदि वायु से तेज पाया हुआ (असि) है। (अन्तरिक्षम् अनु) अन्तरिक्ष के पीछे (अहम्) मैं (वि क्रमे) पराक्रम करता हूँ, (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से (तम्) उस [शत्रु] को (निः भजामः) हम भागरहित करते हैं...... म० २५ ॥२६॥
भावार्थ
मनुष्य अन्तरिक्ष और वायु के उपकारों को विचारकर संसार में उपकारी बने ॥२६॥
टिप्पणी
२६−(अन्तरिक्षसंशितः) अन्तरिक्षात् तीक्ष्णीकृतः (वायुतेजाः) वायुसकाशात् प्राप्ततेजाः। अन्यत् पूर्ववत् सुगमं च ॥
विषय
अन्तरिक्षसंशितो वायुतेजाः
पदार्थ
१. (विष्णो: क्रमः असि) = तू एक पवित्र व्यक्ति के पराक्रमवाला है। इसी से (सपत्नहा) = रोग व वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (अन्तरिक्षसंशितः) = तू हदयरूप अन्तरिक्ष में तीव्र किया गया है, (वायुतेजाः) = वायु के समान तेजस्वी बना है। २. तू निश्चय कर कि (अन्तरिक्षम् अनु) = हदयान्तरिक्ष को लक्ष्य करके (अहम्) = मैं विक्रमे विशिष्ट पुरुषार्थ करता हूँ और (अन्तरिक्षात्) = हदयान्तरिक्ष से उन शत्रुओं को दूर भगाता हूँ। (तम् निर्भजामः०) = [शेष पूर्ववत्]
भावार्थ
कृषि आदि कर्मों में प्रवृत्त रहकर मैं हृदय में पवित्र बनता हूँ। मेरे हृदय में वायु[वा गतिगन्धनयोः] गति द्वारा बुराई के हिंसन का भाव रहता है और मैं निर्देष बनता हूँ।
भाषार्थ
(विष्णोः) विष्णु के (क्रमः) पराक्रम वाला (असि) तू है, (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (अन्तरिक्षसंशितः) अन्तरिक्ष में तेज अर्थात् उग्र (वायुतेजाः) तथा वायुसदृश तेजस्वी तू है। (अहम्) मैं (अन्तरिक्षम् अनु) अन्तरिक्ष में (विक्रमे) विक्रम अर्थात् पराक्रम करता हूं (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भाग रहित करते हैं। (यः) जोकि (अस्मान द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है (यम्) और प्रतीकाररूप में, जिस के साथ (वयम् द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं । (सः) वह (मा) न (जीवीत्) जीवित रहे, (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।
टिप्पणी
[अन्तरिक्ष की देवता वायु है। सार्वभौम शासक, जोकि अन्तरिक्ष में भी उग्र होकर शासन करता है अपने-आप को वायु के सदृश तेजस्वी कहता है। वायु के दो काम हैं, गति और गन्धन (हिंसा)। वा गतिगन्धनयोः (अदादिः)। सार्वभौमशासक की गति अन्तरिक्ष में भी है, अन्तरिक्षगामी शत्रुओं की वह हिंसा करता, और उन्हें अन्तरिक्ष में संचार करने से भागरहित करता है। शत्रु विमानों द्वारा अन्तरिक्ष में संचार कर सकते हैं। शेष अभिप्राय (मन्त्र २५) के सदृश]।
विषय
विजिगीषु राजा के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे राजन् ! तू (विष्णोः क्रमः, असि) विष्णु का चरण है अर्थात् परमेश्वर के समान ही प्रजापालक के अधिकार पर विराजमान है। तू (सपत्नहा) शत्रुओं का नाशक (अन्तरिक्ष-संशितः) अन्तरिक्ष में प्रखर तेज से तीक्ष्णस्वभाव और (वायु-तेजाः) वायु के तेज से तेजस्वी, पराक्रमी है। इस प्रकार की प्रतिष्ठा के अनन्तर राजा संकल्प करे कि (अहम्) मैं (अन्तरिक्षम् अनु) अन्तरिक्ष पर (विक्रमे) विशेष पराक्रम करूं। उसकी प्रजा विचार करे कि (यः अस्मान् द्वेष्टि०) जो हम से द्वेष करे (अन्तरिक्षात् निर्भजामः) उसको अन्तरिक्ष से निकाल दें (स मा जीवीत्०) वह न जीवे, प्राण उसको छोड़ दे।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-२४ सिन्धुद्वीप ऋषिः। २६-३६ कौशिक ऋषिः। ३७-४० ब्रह्मा ऋषिः। ४२-५० विहव्यः प्रजापतिर्देवता। १-१४, २२-२४ आपश्चन्द्रमाश्च देवताः। १५-२१ मन्त्रोक्ताः देवताः। २६-३६ विष्णुक्रमे प्रतिमन्त्रोक्ता वा देवताः। ३७-५० प्रतिमन्त्रोक्ताः देवताः। १-५ त्रिपदाः पुरोऽभिकृतयः ककुम्मतीगर्भा: पंक्तयः, ६ चतुष्पदा जगतीगर्भा जगती, ७-१०, १२, १३ त्र्यवसानाः पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहत्यः, ११, १४ पथ्या बृहती, १५-१८, २१ चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुव् गर्भा अतिधृतयः, १९, २० कृती, २४ त्रिपदा विराड् गायत्री, २२, २३ अनुष्टुभौ, २६-३५ त्र्यवसानाः षट्पदा यथाक्ष शकर्योऽतिशक्वर्यश्च, ३६ पञ्चपदा अतिशाक्कर-अतिजागतगर्भा अष्टिः, ३७ विराट् पुरस्ताद् बृहती, ३८ पुरोष्णिक्, ३९, ४१ आर्षी गायत्र्यौ, ४० विराड् विषमा गायत्री, ४२, ४३, ४५-४८ अनुष्टुभः, ४४ त्रिपाद् गायत्री गर्भा अनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्। पञ्चशदर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
You are the stride, projection and power of Vishnu, subduer of adversaries, strengthened, honed and sharpened by the firmament, blest with the force of thunder and lightning. I strive and advance across the firmament. We strike out that negativity from the firmament which negates us and which we hate. That negativity must not survive. Let even life energy forsake that.
Translation
You are the stride (krama) of the all-prevading Lord (Visņu), slayer of rivals, sharpened by the midspace, full of wind’s might (vāyu-teja). I stride forth on the midspace (antariksat). From the midspace, we drive-out him, who hates us and whom we do hate. May he not live. May the vital breath quit him.
Translation
O King! you are the representative of Vishnu, the All-pervading God amongst the subjects, you are slayer-of enemies, you are praised in the atmospheric region and you possess the vigor of wind. You should think “I will play my glorious part in the atmospheric region”. So that we bar from the earth that man who hates me and whom we abhor. Let him not be alive and let the vital air abandon him,
Translation
O King, thou followest the dictate of God, and art the protector of the people like Him. Thou art foe-slayer. Thou art mighty in space. Thou art forceful like air! I, as king consider it my duty to make huge effort to control the space. We, the subjects, banish him from the space, who hates us and whom we dislike. Let him not live, let vital breath desert him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२६−(अन्तरिक्षसंशितः) अन्तरिक्षात् तीक्ष्णीकृतः (वायुतेजाः) वायुसकाशात् प्राप्ततेजाः। अन्यत् पूर्ववत् सुगमं च ॥
हिंगलिश (1)
Subject
अन्तरिक्षसंशितो वायुतेजाः ।अन्तरिक्षं -आकाश के वायु मंडल की तेजस्विता के उपयोग –प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण के उपयोगके लिए;
Word Meaning
विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “.आकाश के वायु मंडल की तेजस्विता के उपयोग –प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण के उपयोगके लिए ” एक क्रम से (योजनाबद्ध ढंग से ) कर्म करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे हमारी सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |
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