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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 29
    ऋषिः - कौशिकः देवता - विष्णुक्रमः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
    33

    विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हाशा॑संशितो॒ वात॑तेजाः। आशा॒ अनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहमाशा॑भ्य॒स्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णो॑: । क्रम॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । आशा॑ऽसंशित: । वात॑ऽतेजा: । आशा॑: । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । आशा॑भ्य: । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहाशासंशितो वाततेजाः। आशा अनु वि क्रमेऽहमाशाभ्यस्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । आशाऽसंशित: । वातऽतेजा: । आशा: । अनु । वि । क्रमे । अहम् । आशाभ्य: । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    तू (विष्णोः) विष्णु [सर्वव्यापक परमेश्वर] से (क्रमः) पराक्रमयुक्त, (सपत्नहा) वैरियों का नाश करने हारा, (आशासंशितः) मध्य दिशाओं से तीक्ष्ण किया गया, (वाततेजाः) पवन से तेज पाया हुआ (असि) है। (आशाः अनु) मध्य दिशाओं के पीछे (अहम्) मैं (वि क्रमे) पराक्रम करता हूँ, (आशाभ्यः) मध्यदिशाओं से (तम्) उस शत्रु को.... म० २५ ॥२९॥

    भावार्थ

    मन्त्र २८ के समान है ॥२९॥

    टिप्पणी

    २९−(आशासंशितः) मध्यदिशासकाशात् तीक्ष्णीकृतः (वाततेजाः) पवनात् प्राप्ततेजाः..... अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    विषय

    आशासंशितो वाततेजाः

    पदार्थ

    १. (विष्णोः क्रमः असि) = तू एक पवित्र पुरुष के पराक्रमवाला है, अतएव (सपत्नहा) = रोग व वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (आशासंशितः) = इस शरीर-पिण्ड के सम्पूर्ण प्रदेशों में [आशा-space, region] तू तीव्र बना है। (वाततेजाः) = वात [गति] के तेजवाला है। सम्पूर्ण प्रदेश में सब अङ्ग-प्रत्यङ्गों की गति ठीक से हो रही है। २. तू निश्चय कर कि (आशा: अनु) = शरीरस्थ सम्पूर्ण प्रदेशों का लक्ष्य करके (अहं विक्रमे) = मैं विशिष्ट पुरुषार्थवाला होता हूँ। (तम् निर्भजामः०) [शेष पूर्ववत्]

    भावार्थ

    पवित्र कर्मों में व्यस्त रहने के द्वारा मैं शरीर के सम्पूर्ण प्रदेश को सशक्त बनाता हूँ। वहाँ से रोगरूप शत्रुओं को दूर भगाता हूँ।

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    भाषार्थ

    (विष्णोः) विष्णु के (क्रमः) पराक्रम वाला (असि) तू है, (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (आशासंशितः) अवान्तर दिशाओं अर्थात् दिगन्तरों में तेज अर्थात् उग्ररूप (वाततेजाः) तथा बात के सदृश तेजस्वी तू है। (अहम्) मैं (आशाः अनु) अवान्तर दिशाओं अर्थात् दिगन्तरों में (विक्रमे) विक्रम अर्थात् पराक्रम करता हूं, (आशाभ्यः) अवान्तर दिशाओं अर्थात् दिगन्तरों से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भागरहित करते हैं (यः) जोकि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, और (यम्) प्रतीकार रूप में जिसके साथ (वयम् द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं। (सः) वह (मा)(जीवीत्) जीवित रहे, (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।

    टिप्पणी

    [मन्त्र (२८) में दिग्भ्यः द्वारा भूमध्यरेखा पर के सूर्य के होते जो पूर्वादि दिशाएं होती हैं उन का वर्णन हुआ है। और मन्त्र (२९) में अवान्तर दिशाओं का। भूमध्यरेखा से सूर्य, जब उत्तरायण की ओर गति करता है, तब भूमध्यरेखा और उत्तरायण की अन्तिम सीमा के मध्य में जो दिशाएं बनती है वे अवान्तर१ दिशाएं हैं। इसी प्रकार भूमध्यरेखा से दक्षिणायन की अन्तिम सीमा की मध्यवर्ती दिशाएं भी अवान्तर दिशाएं हैं। मार्च मास से अगले मासों में गर्मी बढ़ती जाती है, और वायु झंझारूप में तीव्र गति वाली होती जाती है। इसे बात कहते हैं। इस बात के कारण कई वृक्ष भी धराशायी हो जाते हैं (अथर्व० १२।१।५१)। सार्वभौम शासन में तीव्रता या उग्रता का वर्णन वात द्वारा हुआ है। शेष अभिप्राय मन्त्र (२५) के सदृश। विशेष-२८-२९ मन्त्रों में सार्वभौमशासन के सपत्न का आर्थिक निर्भजन, अर्थात् बहिष्कार वर्णित हुआ है।] [१. अवान्तर दिशाएं सूर्य की दैनिक गति के साथ-साथ प्रतिदित बदलती रहती हैं।]

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    विषय

    विजिगीषु राजा के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (विष्णोः क्रमः असि) हे राजन् ! तू विष्णु, पालक परमेश्वर के पद पर प्रजापालक के कार्य पर नियुक्त है। तू (सपत्नहा) शत्रुनों का नाशक (आशा-संशितः) आशाओं में तीक्ष्णस्वभाव और (वाततेजाः) प्रचण्ड वायु के तेज से तेजस्वी है। इस पद पर नियुक्त राजा संकल्प करे कि (अहम्) मैं (आशाः अनु वि क्रमे) आशाओं में स्वयं पराक्रम करूं (आशाभ्य तं०) इत्यादि पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-२४ सिन्धुद्वीप ऋषिः। २६-३६ कौशिक ऋषिः। ३७-४० ब्रह्मा ऋषिः। ४२-५० विहव्यः प्रजापतिर्देवता। १-१४, २२-२४ आपश्चन्द्रमाश्च देवताः। १५-२१ मन्त्रोक्ताः देवताः। २६-३६ विष्णुक्रमे प्रतिमन्त्रोक्ता वा देवताः। ३७-५० प्रतिमन्त्रोक्ताः देवताः। १-५ त्रिपदाः पुरोऽभिकृतयः ककुम्मतीगर्भा: पंक्तयः, ६ चतुष्पदा जगतीगर्भा जगती, ७-१०, १२, १३ त्र्यवसानाः पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहत्यः, ११, १४ पथ्या बृहती, १५-१८, २१ चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुव् गर्भा अतिधृतयः, १९, २० कृती, २४ त्रिपदा विराड् गायत्री, २२, २३ अनुष्टुभौ, २६-३५ त्र्यवसानाः षट्पदा यथाक्ष शकर्योऽतिशक्वर्यश्च, ३६ पञ्चपदा अतिशाक्कर-अतिजागतगर्भा अष्टिः, ३७ विराट् पुरस्ताद् बृहती, ३८ पुरोष्णिक्, ३९, ४१ आर्षी गायत्र्यौ, ४० विराड् विषमा गायत्री, ४२, ४३, ४५-४८ अनुष्टुभः, ४४ त्रिपाद् गायत्री गर्भा अनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्। पञ्चशदर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    You are Vishnu’s stride of power, presence and force, subduer of adversaries, strengthened, honed and sharpened by definite direction of action, blest with the force of wind shears. I strive and advance in the definite direction of our goal. We strike out those adversaries and hurdles which obstruct us on way and which we hate and reject. Hurdles and adversaries must not survive, much less thrive. Let even life energy forsake the negativities. (5)

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    Translation

    You are the stride (krama) of the all-prevading Lord (Visnu) slayer of rivals, sharpened by the mid-quarters (asa), full of breeze’s might (vāta-tejāh). I stride forth on the midquarters. From the mid-quarters, we drive out him, who hates us and whom we do hate. May he not live. May the vital breath quit him.

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    Translation

    O King! you are the representative of Vishnu, the All-pervading God amongst the subjects, you are slayer of the enemies, you are praised in your desirable enterprise and you possess the vigor of gusty wind. You should think “I will play my glorious part in desirable enterprises”. So that we bar from such desirable enterprises that men who hates me and whom we abhor. Let him not be alive and let the vital air abondon him.

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    Translation

    O King, thou followest the dictate of God, and art the protector of the people like Him. Thou art foe-slayer. Thou art splendid in sub-quarters. Thou art virulent like the wind! I, as king, consider it my duty to be enterprising in sub-quarters. We, the subjects, expel from sub-quarters, him who hates us and whom we dislike. Let him not live, let vital breath desert him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २९−(आशासंशितः) मध्यदिशासकाशात् तीक्ष्णीकृतः (वाततेजाः) पवनात् प्राप्ततेजाः..... अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Wind Energy : अशासंशितो वाततेजाः । आशा- वायु में जो तेज और ऊर्जा है उस के सदुपयोग से

    Word Meaning

    विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “वायु में जो तेज है उस के सदुपयोग” एक क्रम से (योजनाबद्ध ढंग से ) सदुपयोग से कर्म करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे हमारी सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |

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