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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 32
    ऋषिः - कौशिकः देवता - विष्णुक्रमः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा यथाक्षरं शक्वरी, अतिशक्वरी सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
    48

    विष्णोः॒ क्रमो॑ऽसि सपत्न॒हौष॑धीसंशितः॒ सोम॑तेजाः। ओष॑धी॒रनु॒ वि क्र॑मे॒ऽहमोष॑धीभ्य॒स्तं निर्भ॑जामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। स मा जी॑वी॒त्तं प्रा॒णो ज॑हातु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णो॑: । क्रम॑: । अ॒सि॒ । स॒प॒त्न॒ऽहा । ओष॑धीऽसंशित: । सोम॑ऽतेजा: । ओष॑धी: । अनु॑ । वि । क्र॒मे॒ । अ॒हम् । ओष॑धीभ्य: । तम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । स: । मा । जी॒वी॒त् । तम् । प्रा॒ण: । ज॒हा॒तु॒ ॥५.३२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहौषधीसंशितः सोमतेजाः। ओषधीरनु वि क्रमेऽहमोषधीभ्यस्तं निर्भजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। स मा जीवीत्तं प्राणो जहातु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णो: । क्रम: । असि । सपत्नऽहा । ओषधीऽसंशित: । सोमऽतेजा: । ओषधी: । अनु । वि । क्रमे । अहम् । ओषधीभ्य: । तम् । नि: । भजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । स: । मा । जीवीत् । तम् । प्राण: । जहातु ॥५.३२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 32
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    तू (विष्णोः) विष्णु [सर्वव्यापक परमेश्वर] से (क्रमः) पराक्रमयुक्त, (सपत्नहा) वैरियों का नाश करने हारा (ओषधीसंशितः) ओषधियों से तीक्ष्ण किया गया, (सोमतेजाः) सोम [अमृतरस] से तेज पाया हुआ (असि) है। (ओषधीः अनु) ओषधियों के पीछे (अहम्) मैं (वि क्रमे) पराक्रम करता हूँ, (ओषधीभ्यः) ओषधियों से (तम्) उस [शत्रु] को.... म० २५ ॥३२॥

    भावार्थ

    मनुष्य उत्तम ओषधियों और सोम आदि के रस के प्रयोग से बलवान् होकर प्रसन्न रहें ॥३२॥

    टिप्पणी

    ३२−(ओषधीसंशितः) ओषधिसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (सोमतेजाः) सोमरसात्प्राप्ततेजाः। अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    विषय

    ओषधिसंशितः सोमतेजाः

    पदार्थ

    १. (विष्णो: क्रम: असि) = तू पवित्र पुरुष के पराक्रमवाला है। इस पराक्रम से ही (सपत्नहा) = तू रोग व वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (ओषधिसंशित:) = वानस्पतिक [ओषधि] भोजन द्वारा तू तीक्ष्ण शक्तिवाला हुआ है और (सोमतेजा:) = वानस्पतिक भोजन से उत्पन्न सोम से तेजस्वी बना है। २. तू यह निश्चय कर कि (अहम्) = मैं (ओषधी: अनु विक्रमे)) = ओषधि-वनस्पतियों को प्राप्त करने के लक्ष्य से पुरुषार्थवाला होता हूँ और (ओषधिभ्य:) = इन ओषधियों से (तम्०) = [शेष पूर्ववत्]

    भावार्थ

    पवित्र कर्मों को करते हुए हम रोगादि शत्रुओं को विनष्ट करते हैं। ओषधियों के प्रयोग से उत्पन्न सोम[वीर्य] द्वारा मैं तेजस्वी बनता हूँ और इस तेजस्विता के द्वारा निर्दृष बनता हूँ।

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    भाषार्थ

    (विष्णोः) विष्णु के (क्रमः) पराक्रम वाला (असि) तू है (सपत्नहा) सपत्न का हनन करने वाला है, (ओषधीसंशितः) उग्र स्वभाव वाली ओषधियों में उग्र, (सोमतेजाः) और सोमसदृश तेज वाला तू है। (अहम्) मैं (ओषधीः अनु) ओषधियों में (विक्रमे) विक्रम अर्थात् पराक्रम वाला हूँ, (ओषषीभ्यः) ओषधियों से (तम्) उसे (निर्भजामः) हम भाग रहित करते हैं (यः) जो कि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, और (यम्) जिस के साथ (वयम् द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं। (सः) वह (मा)(जीवीत्) जीवित रहे, और (तम्) उसे (प्राणः) प्राण (जहातु) छोड़ जाय।

    टिप्पणी

    [ओषधियां सौम्यस्वभाव वाली भी होती हैं, और उग्र स्वभाव वाली भी। मन्त्र में उग्रस्वभाव वाली ओषधियां अभिप्रेत हैं। सोम भी ओषधि है, जो कि ओषधियों में मुख्य ओषधि है। अतः सोम को ओषधियों का अधिपति अर्थात् स्वामी कहा है, यथा "सोमो वीरुधामधिपतिः" (अथर्व० ५॥२४॥७)। वीरुध् ओषधि है। सार्वभौमशासक सोमसदृश तेज वाला है, अतः वह अपने आप को वीरुधों अर्थात् ओषधियों का स्वामी कहता है। स्वामी होने से वह सपत्न को ओषधि के ग्रहण से वञ्चित कर सकता है। भागरहित कर सकता है। सपत्न के रोगी हो जाने पर, औषधि के न मिलने से, वह प्राणविहीन हो जाता है। शेष अभिप्राय (मन्त्र २५) के सदृश]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    You are the stride and pervasion of Vishnu (into biological life), you are destroyer of adversaries. You are nourished, strengthened and vitalised by herbs, blest with the spirit and ecstatic life of soma. I strive and advance in life like the growth of herbs and trees and their vitality. We remove those adversaries and negativities from oshadhis by oshadhis which obstruct and negate us and which we too hate and oppose. Hate and negativities must not live, nor thrive, let even life energy forsake them.

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    Translation

    You are the stride (krama) of the all-prevading Lord (Visnu) slayer of rivals, sharpened by the herbs (osadhi), full of cure-juice,s might (soma-tejah), I stride forth in the herbs. From the herbs (osadhi), we drive out him, who hates us and whom we do hate. May he not live. May the vital breath quit him.

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    Translation

    O King! you are the representative of the All-pervading God amongst the subjects, you are the slayer of thien emies, you are praised in the advancement of the medical affairs and you possess the vigor of Soma-plant. You should think “I will play my glorious part in the advancement o1 medical affairs”. So that we may bar from the medical advancement that man who hates me! and whom we abhor. Let him not be alive and let the vital air abondon him.

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    Translation

    O King, thou followest the behest of God, and art the protector of the people like Him. Thou art foe-slayer. Thou art-strengthened through the use of medicines, and possess the glow and vigour of Soma, the king of medicinal plants! I, as king, consider it my-duty to get research made in medical science. We, the subjects, prevent from the abuse of medicinal herbs, him who hates us and whom we dislike. Let him not live, let vital breath desert him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३२−(ओषधीसंशितः) ओषधिसकाशात् तीक्ष्णीकृतः (सोमतेजाः) सोमरसात्प्राप्ततेजाः। अन्यत् सुगमं गतं च ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    ओषधीसंशितो सोमतेजाः ।ओषधी विष्णोः क्रमोऽसि सपत्न: ओषधीसंशितो सोमतेजाः ।वनौषधियों के समस्त ज्ञान और विज्ञान –आयुर्वेद के सदुपयोग से उत्पन्न तेजस्विता

    Word Meaning

    विष्णु के संसार के पालन कर्त्ता कार्यक्षेत्र में पराक्रमी बन कर “.वनौषधियों के समस्त ज्ञान और विज्ञान –आयुर्वेद के सदुपयोग से उत्पन्न तेजस्विता ” एक क्रम से (योजनाबद्ध ढंग से ) कर्म करने से सब शत्रुरूपि विघ्न बाधाओं रुकावटों पर विजय पानी होती है | और जो हमारे (इस वेदाधारित ) सृष्टि पालन धर्म की अवहेलना करते है हम से द्वेष करते है वे हमारी सब उपलब्धियों समृद्धियों से वंचित रहेगे और स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे |

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