अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 41
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ता
छन्दः - आर्षी गायत्री
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
39
ब्राह्म॒णाँ अ॒भ्याव॑र्ते। ते मे॒ द्रवि॑णं यच्छन्तु॒ ते मे॑ ब्राह्मणवर्च॒सम् ॥
स्वर सहित पद पाठब्रा॒ह्म॒णान् । अ॒भि॒ऽआव॑र्ते । ते । मे॒ । द्रवि॑णम् । य॒च्छ॒न्तु॒ । ते । मे॒ । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सम् ॥५.४१॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्राह्मणाँ अभ्यावर्ते। ते मे द्रविणं यच्छन्तु ते मे ब्राह्मणवर्चसम् ॥
स्वर रहित पद पाठब्राह्मणान् । अभिऽआवर्ते । ते । मे । द्रविणम् । यच्छन्तु । ते । मे । ब्राह्मणऽवर्चसम् ॥५.४१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(ब्राह्मणान्) ब्राह्मणों [ब्रह्मज्ञानियों] की ओर (अभ्यावर्ते) मैं घूमता हूँ। (ते) वे (मे) मुझे (द्रविणम्) बल और (ते) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] का प्रताप (यच्छन्तु) देवें ॥४१॥
भावार्थ
मनुष्य ब्रह्मज्ञानियों के सत्सङ्ग से ऐश्वर्य और ब्रह्मज्ञान प्राप्त करे ॥४१॥
टिप्पणी
४१−(ब्राह्मणान्) ब्रह्मज्ञानिनः पुरुषान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
दिशाएँ, सप्तर्षि, ब्रह्म, ब्राह्मण
पदार्थ
१. मैं इन (ज्योतिषमती: दिश: अभि आवर्ते) = ज्योतिर्मय दिशाओं की ओर आवर्तनवाला होता है। प्रतिदिन सन्ध्या में इनका ध्यान करता हुआ इनसे आगे बढ़ने की [प्राची], नन बनने की [अवाची], इन्द्रियों को विषयों से वापस लौटाने की [प्रतीची] व ऊपर उठने की [उदीची]' प्रेरणा प्राप्त करता हूँ। २. इसी प्रकार मैं (सप्तऋषीन् अभि आवर्ते) = सात ऋषियों की ओर आवर्तनवाला होता हूँ। 'गोतम' ऋषि का स्मरण करके प्रशस्त इन्द्रियोंवाला [गावः इन्द्रियणि] बनता हूँ। 'भरद्वाज' का स्मरण मुझे शक्तिभरण का उपदेश देता है। विश्वामित्र' की तरह मैं भी सभी के प्रति प्रेमवाला होता हूँ। जाठराग्नि को न बुझने देकर 'जमदग्नि' बनता हूँ। उत्तम वसुओंवाला 'वसिष्ठ' बनता हुआ 'कश्यप'-ज्ञानी बनने के लिए अन्न करता हूँ और इसप्रकार 'अत्रि'-'काम, क्रोध, लोभ' इन तीनों से ऊपर उठता हूँ। २. (ब्रह्म अभि आवर्ते) = मैं अपने प्रत्येक अवकाश के क्षण में ज्ञान की ओर गतिवाला होता हूँ। इसी उद्देश्य से (ब्राह्मणान् अभि आवर्ते) = ज्ञानियों की ओर आवर्तनवाला होता हूँ। इनके सम्पर्क से ज्ञानी बनता हूँ। ये सब बातें मुझे द्रविण व ब्रह्मवर्चस् प्राप्त कराएँ।
भावार्थ
दिशाओं से प्रेरणा लेता हुआ, ससऋषियों के समान आचरण करता हुआ, अवकाश के प्रत्येक क्षण को ज्ञान-प्राप्ति में लगाता हुआ, ज्ञानियों के संपर्क में चलता हुआ मैं "द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' प्राप्त करूँ।
यह 'द्रविण के साथ ब्रह्मवर्चस्' वाला व्यक्ति विशिष्ट हव्योंवाला होता है-उत्तम त्यागवाला बनता है। यज्ञों को करता हुआ यह "विहव्य' अगले नौ मन्त्रों का ऋषि है -
भाषार्थ
(ब्राह्मणान् अभि) ब्राह्मणों की ओर (आवर्ते) मैं आवर्तन करता हूं, उन की शरण में आता हूं। (ते) वे (मे) मुझे (द्रविणम्) ब्रह्मज्ञानरूपी बल और-धन (यच्छन्तु) देवें, (ते) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मणों की दीप्ति दें।
टिप्पणी
[सार्वभौमशासक ब्रह्म के ज्ञान और उस की प्राप्ति के लिये ब्राह्मणों की शरण में जाना चाहता है। ब्राह्मण हैं वेदज्ञ तथा ब्रह्मज्ञ व्यक्ति, न कि जन्मतः। ब्रह्म के दो अर्थ होते हैं, (१) वेद और विशेषतया ब्रह्मवेद (अथर्व वेद), तथा जगत् का स्वामी परमेश्वर। ३७-४१ के मन्त्रों में शासकों के लिये आदर्श उपस्थित किया है]।
विषय
विजिगीषु राजा के प्रति प्रजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(ब्राह्मणान् अभि आवर्ते) ब्राह्मणों की शरण जाता हूं। (ते मे द्रविणं यच्छन्तु) वे मुझे द्रविण प्रदान करें (ते मे ब्राह्मण-वर्चसम्) वे मुझे विद्वान् ब्राह्मणों का तेज भी प्रदान करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-२४ सिन्धुद्वीप ऋषिः। २६-३६ कौशिक ऋषिः। ३७-४० ब्रह्मा ऋषिः। ४२-५० विहव्यः प्रजापतिर्देवता। १-१४, २२-२४ आपश्चन्द्रमाश्च देवताः। १५-२१ मन्त्रोक्ताः देवताः। २६-३६ विष्णुक्रमे प्रतिमन्त्रोक्ता वा देवताः। ३७-५० प्रतिमन्त्रोक्ताः देवताः। १-५ त्रिपदाः पुरोऽभिकृतयः ककुम्मतीगर्भा: पंक्तयः, ६ चतुष्पदा जगतीगर्भा जगती, ७-१०, १२, १३ त्र्यवसानाः पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्मा बृहत्यः, ११, १४ पथ्या बृहती, १५-१८, २१ चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुव् गर्भा अतिधृतयः, १९, २० कृती, २४ त्रिपदा विराड् गायत्री, २२, २३ अनुष्टुभौ, २६-३५ त्र्यवसानाः षट्पदा यथाक्ष शकर्योऽतिशक्वर्यश्च, ३६ पञ्चपदा अतिशाक्कर-अतिजागतगर्भा अष्टिः, ३७ विराट् पुरस्ताद् बृहती, ३८ पुरोष्णिक्, ३९, ४१ आर्षी गायत्र्यौ, ४० विराड् विषमा गायत्री, ४२, ४३, ४५-४८ अनुष्टुभः, ४४ त्रिपाद् गायत्री गर्भा अनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्। पञ्चशदर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
I follow the course of life shown by Brahmanas, sages of knowledge and enlightenment. May they give me wealth and glory of the Brahmanic order of honour and enlightenment. Part 4
Translation
I turn to the intellectual persons (brahmaņām); may they grant me wealth; may they grant me an intellectual person’s lustre.
Translation
I follow Brahmanas, the learned men who know the Veda and God. May they bestow upon me wealth and may they give me the glory of Brahmana.
Translation
I seek the protection of pious learned persons. May they bestow upon me wealth and glory of knowledge.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४१−(ब्राह्मणान्) ब्रह्मज्ञानिनः पुरुषान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
हिंगलिश (1)
Subject
Vedic Temperaments
Word Meaning
वेदों के ज्ञान को हम व्यवहार लाते हैं जिस से हमें ऐसा सब धन प्राप्त हो जो हमारे अंदर ब्राह्मण वृत्तियों की तेजस्विता और सामर्थ्य उत्पन्न करे | ( समृद्ध होने पर सात्विक अपरिग्रह और दान की जीवन शैलि अपनाओ |
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