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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 16
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपः देवता - आपः, चन्द्रमाः छन्दः - चतुरवसाना दशपदा त्रैष्टुभगर्भातिधृतिः सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
    36

    यो व॑ आपो॒ऽपामू॒र्मिर॒प्स्वन्तर्य॑जु॒ष्यो देव॒यज॑नः। इ॒दं तमति॑ सृजामि॒ तं माभ्यव॑निक्षि। तेन॒ तम॒भ्यति॑सृजामो॒ यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः। तं व॑धेयं॒ तं स्तृ॑षीया॒नेन॒ ब्रह्म॑णा॒नेन॒ कर्म॑णा॒नया॑ मे॒न्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । व॒: । आ॒प॒: । अ॒पाम् । ऊ॒र्मि: । अ॒प्ऽसु । अ॒न्त: । य॒जु॒ष्य᳡: । दे॒व॒ऽयज॑न: । इ॒दम् । तम् । अति॑ । सृ॒जा॒मि॒ । तम् । मा । अ॒भि॒ऽअव॑निक्षि । तेन॑ । तम् । अ॒भि॒ऽअति॑सृजाम: । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । तम् । व॒धे॒य॒म् । तम् । स्तृ॒षी॒य॒ । अ॒नेन॑ । ब्रह्म॑णा । अ॒नेन॑ । कर्म॑णा । अ॒नया॑ । मे॒न्या ॥५.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो व आपोऽपामूर्मिरप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः। इदं तमति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि। तेन तमभ्यतिसृजामो योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः। तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । व: । आप: । अपाम् । ऊर्मि: । अप्ऽसु । अन्त: । यजुष्य: । देवऽयजन: । इदम् । तम् । अति । सृजामि । तम् । मा । अभिऽअवनिक्षि । तेन । तम् । अभिऽअतिसृजाम: । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । तम् । वधेयम् । तम् । स्तृषीय । अनेन । ब्रह्मणा । अनेन । कर्मणा । अनया । मेन्या ॥५.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 5; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (आपः) हे विद्वानो ! (यः) जो (वः अपाम्) तुम विद्वानों का (ऊर्मिः) वेग (अप्सु अन्तः) विद्वानों के बीच.... मन्त्र १५ ॥१६॥

    भावार्थ

    मन्त्र १५ के समान है ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(ऊर्मिः) अर्तेरूच्च। उ० ४।४४। ऋ गतौ−मि, ऊत्वम्। तरङ्गः। प्रकाशः। वेगः। अन्यत् पूर्ववत्−म० १५ ॥

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    विषय

    रेतःकणों का महत्त्व

    पदार्थ

    १. हे (आप:) = रेत:कणो! (य:) = जो (व:) = आपका (अपाम्) = प्रजाओं का (भाग:) = पूजन [भज सेवायाम्] है, अर्थात् आपके रक्षण से प्रजाओं के अन्दर जो प्रभु-पूजन का भाव उत्पन्न होता है, इसी प्रकार जो (अपाम् ऊर्मि:) = प्रजाओं का प्रकाश है [उर्मि light], आपके रक्षण से जो प्रकाश उत्पन्न होता है। जो (अपां वत्स:) = [वदति] प्रजाओं का ज्ञान की बाणियों का उच्चारण है। (अपां वृषभ:) = प्रजाओं में सुखों का सेचन है [वृष् सेचने]। (अपां हिरण्यगर्भः) = प्रजाओं में ज्योति को धारण करना है। (अपां अश्मा) = प्रजाओं का पाषाण-तुल्य दृढ़-शरीर है, (पृश्नि:) = अंग प्रत्यंग में रसों का संस्पर्श है [संस्प्रष्टा रसान्-नि०२।१४] तथा (दिव्यः) = देववृत्तियों का जन्म है और अन्तत: (अपां अग्नयः) = प्रजाओं के अन्दर आगे बढ़ने की वृत्तियाँ हैं। ये सब (अप्सु अन्त:) = प्रजाओं के अन्दर (यजुष्य:) = यजुष्य हैं-यज्ञात्मकवृत्तियों को जन्म देने के लिए उत्तम है। ये सब बातें (देवयजन:) = उस देव के साथ-प्रभु के साथ मेल करानेवाली हैं। २. (अतः इदम्) [इदानीम्] = अब मैं (तम् उ) = उस रेत:कण [वीर्यशक्ति] को ही (अतिसजामि) = अतिशयेन अपने अन्दर उत्पन्न करता हूँ। (तं मा अभिअवनिक्षि) = उसका मैं सफाया न कर दूं-उसे अपने अन्दर सुरक्षित काँ[अवनिज् wipe off] (तेन) = उस वीर्यशक्ति के द्वारा (तम् अभि अतिसूजामः) = उसे अपने से दूर करते हैं [अतिसृज् part with] (यः) = जो (अस्मान् द्वेष्टि) = हम सबके प्रति अप्रीतिवाला है और (परिणामत: यं वयं द्विष्मः) = जिससे हम भी प्रीति नहीं कर सकते। (तम्) = उसे (अनेन बह्मणा) = इस ज्ञान के द्वारा (अनेन कर्मणा) = इस यज्ञादि कर्म के द्वारा तथा (अनया मेन्या) = इस उपासनारूप वज्र के द्वारा [मेनि:-मन्] (तं वधेयम्) = उस समाज-विद्विष्ट को समाप्त कर (दंतं स्तृषीय) = उसे नष्ट कर दूं [स्तृ to kill]।

    भावार्थ

    रेत:कणों के रक्षण से हममें 'उपासना के भाव, प्रकाश, ज्ञान की वाणियों का उच्चारण, सुख, ज्योति, दृढ रसमय दिव्यता व प्रगतिशीलता' की उत्पत्ति होती है, अत: रेत:कणों का रक्षण आवश्यक है। इससे द्वेषभाव भी विनष्ट हो जाता है।

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    भाषार्थ

    (आपः) हे आप्त प्रजाओं! (वः) तुम्हारा (यः) जो (अपाम्) प्रजाओं सम्बन्धी (ऊर्मिः) लहर है, जोकि (अस्तु अन्तः) तुम्हारे हृदयान्तर्वर्ती जलों में विद्यमान है, (यजुष्यः) यजनीय तथा (देवयजनः) देवों अर्थात साध्यों और ऋषियों द्वारा यजनीय है, (तम्) उसके प्रति (इदम्) इस शरीर या मन को (अति सृजामि) मैं सम्राट् भेंट करता हूं, समर्पित करता हूं, [हे परमेश्वर] (तम् मा) उस मुझ को, (अभि अवनिक्षि) अभिमुख होकर, शुचि कर, पवित्र कर। (तेन) उस शुचि, पवित्र सम्राट् की आज्ञा द्वारा (तम्) उस शत्रुराजा का, (अभि) अभिमुख होकर, (अतिसृजामः) हम सैनिक विनाश करते हैं, वध करते हैं, (यः) जो कि (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, और (यम्) जिस के साथ-प्रतिक्रिया में, (वयम्, द्विष्मः) हम द्वेष करते हैं। अथवा (तम्) उस शत्रुराजा का (वधेयम्) मैं सम्राट् स्वयं वध करूं, (तम्) उस का (स्तृषीय) विनाश करूं, (अनेना ब्रह्मणा) इस मन्त्रोक्त विधि द्वारा, (अनेन कर्मणा) इस [द्वन्द्वयुद्धरूपी], कर्मद्वारा, (अनया मेन्या) इस वज्र द्वारा।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में "ऊर्मि" द्वारा लहर के रूप में परमेश्वर का वर्णन हुआ है। लहरें समुद्र में उठा करती हैं। इस से हृदय को समुद्र कहा है। इस हृदय- समुद्र में परमेश्वर की स्तुतिरूप में स्तुति-लहरें उठती हैं। इन लहरों में परमेश्वर स्तवनीयरूप में प्रकट हो रहा होता है। अतः वह "ऊर्मि" है। इस सम्बन्ध में यजुर्वेद का मन्त्र विशेष महत्त्व का है। यथा- एता अर्षन्ति हृद्यात्समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे । घृतस्य धारा अभि चाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्य आसाम् ॥ (एताः) ये स्तुतिवाणियां (शतव्रजाः) सैकड़ों वेगों वाली हुई, (हृद्यात् समुद्रात्) हृदयरूपी समुद्र से (अर्षन्ति) उठती हैं, (रिपुणा) जो कि स्तुतियों के रिपू द्वारा (न अवचक्षे) अवख्याति को प्राप्त नहीं होतीं। (घृतस्य) प्रकाश की (धाराः) धाराओं को (अभिचाकशीमि) मैं संमुख देख रहा हूं, (आसाम्) इन धाराओं के (मध्ये) बीच में (हिरण्ययः) हिरण्यवर्णी (वेतसः) संसारपट का बुनने वाला परमेश्वर प्रकट हो रहा है, घृतस्य=घृ क्षरणदीप्त्योः (जुहोत्यादिः) मन्त्र में "दीप्ति" अर्थ अभिप्रेत है। वेतसः=वेञ् तन्तुसन्ताने, वयति तन्तून् संतनोतीति (उणा० ३।११८)। ये प्रकाशमयी धाराएं भी ऊर्मिरूप हैं, जो कि स्तुति मन्त्रों के जप में प्रकट हो रही होती हैं]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Victory

    Meaning

    O people of the state, whoever of the people is most dynamic in the business of governance and administration of the order, loved by society and respected by the wise for his dynamism, here I appoint, and entrust the department to him. Do not forsake him, nor must I neglect him, and thereby we take on whoever hates us and whoever we disapprove, and with this knowledge, through this process of law, and with this act of justice, we counter, cover and eliminate that element of hate and enmity.

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    Translation

    What of you, O waters, is the wave (ūrmi) of the waters, useful for the sacrificial rites (yajusya) and useful for the congregation of enlightened beings (gods or devas), that I present here, may I not dismiss or ignore him outright. That let me not wash down against myself (tam mābhya vaniksi). That we do not let go against him who hates us, or whom we hate; him may I slay, or stab, him may I bestrew (strsiya) with this prayer (brahmaņnā), with this acts (karmaņā) with this weapon (menyā).

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    Translation

    O learned men! to him is the quick propagator of your virtues and actions among the people and is performer of yajna and server of enlightened persons, I, the priest entrust this Kingdom. Let not you dishonor him. By him we attack on him who hates us and whom we abhor. We overthrow and slay him through this Knowledge, through this act and through this fatal weapon.

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    Translation

    O learned persons, the King powerful like the current of waters, controlling your actions, living among you, is worthy of reverence and worship by godly persons. I hand over the administration of this State to him. May I never show him disrespect. With his help we invade the enemy who hates us and whom we abhor. Him would I fain overthrow and slay with this Vedic knowledge, with this heroic deed, and with this army!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(ऊर्मिः) अर्तेरूच्च। उ० ४।४४। ऋ गतौ−मि, ऊत्वम्। तरङ्गः। प्रकाशः। वेगः। अन्यत् पूर्ववत्−म० १५ ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Hinduism is a way of life -Traditions हिंदु धर्म की परम्परा – हमारी मान्यताएं ,रीति रिआज , जीवन शैलि का रहस्य

    Word Meaning

    हे आप्त- प्रजा जनो जो अपवादविहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित जो ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से प्रेरणा द्वारा सब की मानसिकता को परिवर्तन के लिए आंदोलित कर देने वाली शक्ति , जैसे नदी या समुद्र के जल के सब ओर छा जाने वाली , जैसे सूर्य देवता के प्रकाश की पृथ्वी को आच्छादित कर देने वाली उत्तम प्रेरणाएं हैं उन के प्रति तुम्हारे शरीर और मन को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |

    Tika / Tippani

    उर्मि: - सब की मानसिकता परिवर्तन के लिए आंदोलित कर देने वाली शक्ति , जैसे नदी या समुद्र के जल के छा जाने की लहर , जैसे सूर्य देवता के प्रकाश की पृथ्वी को आच्छादित कर देना ,बुद्ध द्वारा वाममार्ग हिन्सा के विरुद्ध , आदि शंकर द्वारा बौद्ध धर्म पर , ETC.

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