अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 48
ऋषिः - सिन्धुद्वीपः
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विजय प्राप्ति सूक्त
42
यद॑ग्ने अ॒द्य मि॑थु॒ना शपा॒तो॒ यद्वा॒चस्तृ॒ष्टं ज॒नय॑न्त रे॒भाः। म॒न्योर्मन॑सः शर॒व्या॒ जाय॑ते॒ या तया॑ विध्य॒ हृद॑ये यातु॒धाना॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अ॒ग्ने॒ । अ॒द्य । मि॒थु॒ना । शपा॑त: । यत् । वा॒च: । तृ॒ष्टम् । ज॒नय॑न्त । रे॒भा: । म॒न्यो: । मन॑स: । श॒र॒व्या᳡ । जाय॑ते । या । तया॑ । वि॒ध्य॒ । हृद॑ये । या॒तु॒ऽधाना॑न् ॥५.४८॥
स्वर रहित मन्त्र
यदग्ने अद्य मिथुना शपातो यद्वाचस्तृष्टं जनयन्त रेभाः। मन्योर्मनसः शरव्या जायते या तया विध्य हृदये यातुधानान् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अग्ने । अद्य । मिथुना । शपात: । यत् । वाच: । तृष्टम् । जनयन्त । रेभा: । मन्यो: । मनस: । शरव्या । जायते । या । तया । विध्य । हृदये । यातुऽधानान् ॥५.४८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
शत्रुओं के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(अग्ने) हे अग्नि [समान तेजस्वी राजन् !] (यत्) जो (अद्य) आज (मिथुना) दो हिंसक मनुष्य [सत्पुरुषों से] (शपातः) कुवचन बोलते हैं, और (यत्) जो (रेभाः) शब्द करनेवाले [शत्रु लोग] (वाचः) वाणी की (तृष्टम्) कठोरता (जनयन्त) उत्पन्न करते हैं, (मन्योः) क्रोध से (मनसः) मन की (या) जो (शरच्याः) बाणों की झड़ी (जायते) उत्पन्न होती है, (तया) उस से (यातुधानान्) दुःखदायिओं को (हृदये) हृदय में (विध्य) तू बेध ले ॥४८॥
भावार्थ
राजा दुर्वचनभाषियों को विचारपूर्वक दण्ड देता रहे ॥४८॥ यह मन्त्र आचुका है-अ० ८।३।१२ ॥
टिप्पणी
४८−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ८।३।१२ ॥
पदार्थ
इन मन्त्रों का भाष्य अथर्व० ८।३।१२-१३ पर देखिए।
भाषार्थ
(अग्ने) हे अग्रणी प्रधानमन्त्रिन् ! (अद्य) आज (मिथुना) विवाहित पति-पत्नी (यद्) जो (शपातः) एक-दूसरे को शाप देते हैं, तथा (रेभाः) परमेश्वर की स्तुति करने वाले (यत्) जो (वाचः) वाणी की (तृष्टम्) कटुता (जनयन्त) प्रकट करते हैं। (मन्योः) मन्यु के कारण (मनसः) मन से (या) जो (शरव्या) शरवत् तीक्ष्ण बींधने वाली वाणी (जायते) पैदा होती है (तया) उस द्वारा (यातुधानान्) यातनाओं अर्थात् पीड़ाओं के निधानों, प्रजापीड़कों को (हृदये) उनके हृदयों में (विध्य) बींध।
टिप्पणी
[अद्य= किसी भी दिन। शपातः = शप आक्रोशे (भ्वादिः, दिवादिः)। आकोशे= क्रुश आह्वाने रोदने च (भ्वादिः) परस्पर निन्दा, अपवदन, तिरस्कार, दोषारोपण आदि। अभिप्राय यह कि पती-पत्नी के पारस्परिक निन्दा आदि करने पर उन्हें, परमेश्वर के स्तावक होते हुए भी कटु वाणी बोलने पर उन्हें, तथा प्रजापीड़कों को, अर्थात् इन सब के हृदयों को तीखी वाणी द्वारा बींध, इन्हें उग्रवाणी द्वारा फटकार।
इंग्लिश (4)
Subject
The Song of Victory
Meaning
Hey Agni, now whatever wedded couples swear at each other, what rude word wastours utter in quarrel, whatever painful words are uttered by them out of angry mind, with that very affliction strike these hurtful people through the heart. (Let them realise what pain is.)
Translation
O fire-divine, what the evil-minded wicked person has uttered in the foremost a curse today and what harshness of speech was clear from street mongers, speaking aloud what they gave out in anger and fury, may you suppress them with strictness and severity. Crush them at the very root.
Translation
O ruler! what curse the dual in quarel utters, what rude, rough and cruel word the fighting persons use, and what arrow-like taunt and word of rage comes out from the anger of angry mind let you therewith pierce the wicked men in their heart.
Translation
O King, whatever ill-words the two violent persons use against the godly persons, whatever bitter speech the chatterers utter, with righteous indignation’s arrow, offspring of the mind, transfix thou to the heart the evil tormentors.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४८−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ८।३।१२ ॥
हिंगलिश (1)
Subject
Avoid Hot Words as Reaction वाणि से प्रतिक्रिया निषेध (कटु शब्द न बोलें )
Word Meaning
हे राजन उन्हें वाग्दण्ड दें ,जो आज पति पत्नी क्रोध में आ कर परस्पर कटु अपशब्द बोल बैठते हैं, बहुत बोलने के स्वभाव वाले मित्र भी वाणी द्वारा कटुता उत्पन्न करते हैं उन की वाणी विचारशील जनों के हृदय को पीड़ा पहुंचाने वाले बाण की तरह बींध देती हैं - आवेश में आ कर कुछ भी कटु शब्द न बोलें |
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