यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 27
ऋषिः - श्रुतबन्धुर्ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - विराट् गायत्री,
स्वरः - षड्जः
8
इड॒ऽएह्यदि॑त॒ऽएहि॒ काम्या॒ऽएत॑। मयि॑ वः काम॒धर॑णं भूयात्॥२७॥
स्वर सहित पद पाठइडे॑। आ। इ॒हि॒। अदि॑ते। आ। इ॒हि॒। काम्याः॑। आ। इ॒त॒। मयि॑ वः॒। का॒म॒धर॑ण॒मिति॑ काम॒ऽधर॑णम्। भू॒या॒त् ॥२७॥
स्वर रहित मन्त्र
इडऽएह्यदित एहि काम्या एत । मयि वः कामधरणम्भूयात् ॥
स्वर रहित पद पाठ
इडे। आ। इहि। अदिते। आ। इहि। काम्याः। आ। इत। मयि वः। कामधरणमिति कामऽधरणम्। भूयात्॥२७॥
विषय - फिर उस की प्रार्थना किसलिये करनी चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ -
हे परमेश्वर! आपकी कृपा से (इडे) यह पृथिवी मुझ को राज्य करने के लिये (एहि) अवश्य प्राप्त हो तथा (अदिते) सब सुखों को प्राप्त करने वाली नाशरहित राजनीति (एहि) प्राप्त हो। इसी प्रकार हे मघवन्! अपनी पृथिवी और राजनीति के द्वारा (काम्याः) इष्ट-इष्ट पदार्थ (एत) प्राप्त हों तथा (मयि) मेरे बीच में (वः) उन पदार्थों की (कामधरणम्) स्थिरता (भूयात्) यथावत् हो॥२७॥
भावार्थ - मनुष्यों को उत्तम-उत्तम पदार्थों की कामना निरन्तर करनी तथा उनकी प्राप्ति के लिये परमेश्वर की प्रार्थना और सदा पुरुषार्थ करना चाहिये। कोई मनुष्य अच्छी वा बुरी कामना के विना क्षणभर भी स्थित होने को समर्थ नहीं हो सकता, इससे सब मनुष्यों को अधर्मयुक्त व्यवहारों की कामना को छोड़कर धर्मयुक्त व्यवहारों की जितनी इच्छा बढ़ सके उतनी बढ़ानी चाहिये॥२७॥
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