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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 81
    ऋषिः - गृत्समद ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - आर्च्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    गोम॑दू॒ षु णा॑स॒त्याश्वा॑वद्यातमश्विना। व॒र्त्ती रु॑द्रा नृ॒पाय्य॑म्॥८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गोम॒दिति॒ गोऽम॑त्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सु। ना॒स॒त्या॒। अश्वा॑वत्। अश्व॑व॒दिति॒ अश्व॑ऽवत्। या॒त॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। व॒र्त्तिः। रु॒द्रा॒। नृ॒पाय्य॒मिति॑ नृ॒ऽपाय्य॑म् ॥८१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोमदू षु णासत्या अश्वावद्यातमश्विना । वर्ती रुद्रा नृपाय्यम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गोमदिति गोऽमत्। ऊँऽइत्यूँ। सु। नासत्या। अश्वावत्। अश्ववदिति अश्वऽवत्। यातम्। अश्विना। वर्त्तिः। रुद्रा। नृपाय्यमिति नृऽपाय्यम्॥८१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 81
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    Meaning -
    Ashvinis, eminent teacher and sagely preacher going by the path of truth, and Rudras, men of justice and rectitude, go slow by the path of the cow, go fast by the path of the horse, as is fair, but see you go by the path which is beneficial to humanity and worthy of acceptance and support.

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