Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सभापतिर्देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    6

    शिरो॑ मे॒ श्रीर्यशो॒ मुखं॒ त्विषिः॒ केशा॑श्च॒ श्मश्रू॑णि। राजा॑ मे प्रा॒णोऽअ॒मृत॑ꣳ स॒म्राट् चक्षु॑र्वि॒राट् श्रोत्र॑म्॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शिरः॑। मे॒। श्रीः। यशः॑। मुख॑म्। त्विषिः॑। केशाः॑। च॒। श्मश्रू॑णि। राजा॑। मे॒। प्रा॒णः। अ॒मृत॑म्। स॒म्राडिति॑ स॒म्ऽराट्। चक्षुः॑। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। श्रोत्र॑म् ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिरो मे श्रीर्यशो मुखन्त्विषिः केशाश्च श्मश्रूणि । राजा मे प्राणो अमृतँ सम्राट्चक्षुर्विराट्श्रोत्रम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शिरः। मे। श्रीः। यशः। मुखम्। त्विषिः। केशाः। च। श्मश्रूणि। राजा। मे। प्राणः। अमृतम्। सम्राडिति सम्ऽराट्। चक्षुः। विराडिति विऽराट्। श्रोत्रम्॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    Meaning -
    People of the world: honour of the human nation is my head, nobility of the people is my mouth, light of justice and grandeur of world culture is my hair, moustache and beard, good governance is my life and breath, unity of the order is my vision, and diversity of the constituents is my ear.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top