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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 82
    ऋषिः - गृत्समद ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    न यत्परो॒ नान्त॑रऽआद॒धर्ष॑द् वृषण्वसू। दुः॒शꣳसो॒ मर्त्यो॑ रि॒पुः॥८२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न। यत्। परः॑। न। अन्त॑रः। आ॒द॒धर्ष॒दित्या॑ऽद॒धर्ष॑त्। वृ॒ष॒ण्व॒ऽसू॒इति॑ वृषण्ऽवसू। दुः॒शꣳस॒ इति॑ दुः॒ऽशꣳसः॑। मर्त्यः॑। रि॒पुः ॥८२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न यत्परो नान्तरऽआदधर्षद्वृषण्वसू । दुःशँसो मर्त्या रिपुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    न। यत्। परः। न। अन्तरः। आदधर्षदित्याऽदधर्षत्। वृषण्वऽसू इति वृषण्ऽवसू। दुःशꣳस इति दुःऽशꣳसः। मर्त्यः। रिपुः॥८२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 82
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    Meaning -
    Ashvinis, ruler and defender, showers of wealth and shelter of the strong, let there be no man too strong uncontrollable, far or near or in the middle, to terrorize us or jeopardize the state.

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