अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 3
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
तासा॒मेका॒ हरि॑क्निका ॥
स्वर सहित पद पाठतासा॒म् । एका॒ । हरि॑क्निका ॥१२९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
तासामेका हरिक्निका ॥
स्वर रहित पद पाठतासाम् । एका । हरिक्निका ॥१२९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 3
विषय - मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ -
(तासाम्) उन [व्यापक प्रजाओं] के बीच (एका) एक [स्त्री प्रजा] (हरिक्निका) मनुष्य में प्रीति करनेवाली है ॥३॥
भावार्थ - सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावे ॥३-६॥
टिप्पणी -
३−(तासाम्) पूर्वोक्तप्रजानां मध्ये (एका) स्त्री प्रजा (हरिक्निका) हरयो मनुष्याः-निघ० २।३। क्वुन् शिल्पिसंज्ञयोरपूर्वस्यापि। उ० २।३२। कनी दीप्तिकान्तिगतिषु-क्वुन्, टाप्, अत इत्त्वम्। धातोः अकारलोपः। हरिक्निका। मनुष्येच्छुका ॥