अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 1
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
ए॒ता अश्वा॒ आ प्ल॑वन्ते ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ता: । अश्वा॒: । प्ल॑वन्ते ॥१२९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
एता अश्वा आ प्लवन्ते ॥
स्वर रहित पद पाठएता: । अश्वा: । प्लवन्ते ॥१२९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 1
विषय - मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ -
(एताः) यह (अश्वाः) व्यापक प्रजाएँ (प्रतीपम्) प्रत्यक्ष व्यापक (सुत्वनम् प्राति) ऐश्वर्यवाले [परमेश्वर] के लिये (आ) आकर (प्लवन्ते) चलती हैं ॥१, २॥
भावार्थ - संसार के सब पदार्थ उत्पन्न होकर परमेश्वर की आज्ञा में वर्त्तमान हैं ॥१, २॥
टिप्पणी -
[पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो]१−(एताः) उपस्थिताः (अश्वाः), अशू व्याप्तौ-क्वन्, टाप्। व्यापिकाः प्रजाः (आ) आगत्य (प्लवन्ते) गच्छन्ति ॥