अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 15
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
पल्प॑ बद्ध॒ वयो॒ इति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपल्प॑ । बद्ध॒ । वय॒: । इति॑ ॥१२९.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
पल्प बद्ध वयो इति ॥
स्वर रहित पद पाठपल्प । बद्ध । वय: । इति ॥१२९.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 15
विषय - मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ -
(पल्प) हे रक्षक ! (बद्ध) हे प्रबन्ध करनेवाले ! [पुरुष] (वयः इति) यह जीवन है ॥१॥
भावार्थ - मनुष्य सावधान जितेन्द्रिय होकर पाप से बचने का उपाय करते रहें ॥१, १६॥
टिप्पणी -
१−(पल्प) पानीविषिभ्यः पः। उ० ३।२३। पल गतौ रक्षणे च-पप्रत्ययः। हे रक्षक (बद्ध) कर्तरि क्त। हे प्रबन्धक (वयः) जीवनम् (इति) अवधारणे ॥