अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 129/ मन्त्र 4
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
हरि॑क्नि॒के किमि॑च्छसि ॥
स्वर सहित पद पाठहरि॑क्नि॒के । किम् । इ॑च्छसि ॥१२९.४॥
स्वर रहित मन्त्र
हरिक्निके किमिच्छसि ॥
स्वर रहित पद पाठहरिक्निके । किम् । इच्छसि ॥१२९.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 129; मन्त्र » 4
विषय - मनुष्य के लिये प्रयत्न का उपदेश।
पदार्थ -
(हरिक्निके) हे मनुष्य में प्रीति करनेवाली ! तू (किम्) क्या (इच्छसि) चाहती है ॥४॥
भावार्थ - सृष्टि के बीच माता अपने पुरुष से प्रीति करके सन्तान उत्पन्न करके उनको कुमार्ग से बचाके तेजस्वी और सुमार्गी बनावे ॥३-६॥
टिप्पणी -
४−(हरिक्निके) म० ३। हे मनुष्येच्छुके (किम्) (इच्छसि) कामयसे ॥