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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 10
    सूक्त - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९२

    यो व्यतीँ॒रफा॑णय॒त्सुयु॑क्ताँ॒ उप॑ दा॒शुषे॑। त॒क्वो ने॒ता तदिद्वपु॑रुप॒मा यो अमु॑च्यत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । व्यती॑न् । अफा॑णयत् । सुऽयु॑क्तान् । उप॑ । दा॒शुषे॑ ॥ त॒क्व: । ने॒ना । तत् । इत् । वपु॑: । उ॒प॒ऽमा । य: । अमु॑च्यत ॥९२.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो व्यतीँरफाणयत्सुयुक्ताँ उप दाशुषे। तक्वो नेता तदिद्वपुरुपमा यो अमुच्यत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । व्यतीन् । अफाणयत् । सुऽयुक्तान् । उप । दाशुषे ॥ तक्व: । नेना । तत् । इत् । वपु: । उपऽमा । य: । अमुच्यत ॥९२.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    (यः) जिस [परमात्मा] ने (व्यतीन्) विविध प्रकार चलते रहनेवाले, (सुयुक्तान्) बड़े योग्य पदार्थों को (दाशुषे) आत्मदानी [भक्त] के लिये (उप) सुन्दर रीति से (अफाणयत्) सहज में उत्पन्न किया है और (यः) जिस [परमात्मा] ने (उपमाः) पास रहनेवाले को (अमुच्यत) [दुःखों से] मुक्त किया है, (तत् इत्) वही (वपुः) बीज बोनेवाला [ब्रह्म] (तक्वः) व्यापक (नेता) नेता [अगुआ परमात्मा] है ॥१०॥

    भावार्थ - जिस परमात्मा ने अपने सहज स्वभाव से अनोखे-अनोखे पदार्थ रचकर अपने विवेकी भक्तों को परम आनन्द दिया है, सब मनुष्य उस सर्वशक्तिमान् की उपासना करके सुखी होवें ॥१०॥

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