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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 4
    सूक्त - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९२

    उद्यद्ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपं॑ गृ॒हमिन्द्र॑श्च॒ गन्व॑हि। मध्वः॑ पी॒त्वा स॑चेवहि॒ त्रिः स॒प्त सख्युः॑ प॒दे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् ।यत् । ब्र॒ध्नस्य॑ । वि॒ष्टप॑म् । गृ॒हम् । इन्द्र॑: । च॒ । गन्व॑हि ॥ मध्व॑: । पी॒त्वा । स॒चे॒व॒हि॒ । त्रि । स॒प्त । सख्यु॑: । प0952गदे ॥९२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्यद्ब्रध्नस्य विष्टपं गृहमिन्द्रश्च गन्वहि। मध्वः पीत्वा सचेवहि त्रिः सप्त सख्युः पदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् ।यत् । ब्रध्नस्य । विष्टपम् । गृहम् । इन्द्र: । च । गन्वहि ॥ मध्व: । पीत्वा । सचेवहि । त्रि । सप्त । सख्यु: । प0952गदे ॥९२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (यत्) जब (ब्रध्नस्य) नियम करनेवाले [वा महान्, परमेश्वर] के (विष्टपम्) सहारे [अर्थात्] (गृहम्) शरण को (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला आचार्य] (च) और [मैं ब्रह्मचारी] (उत्) ऊँचे होकर (गन्वहि) हम दोनों प्राप्त करें। (त्रिः) तीन बार [सत्त्व, रज, तम तीनों गुणों सहित] (सप्त) सात [भूर् भुवः आदि सात अवस्थाओंवाले संसार] के (मध्वः) निश्चित ज्ञान का (पीत्वा) पान करके (सख्युः) सखा [मित्र, परमात्मा] के (पदे) पद [प्राप्तियोग्य मोक्षसुख] में (सचेवहि) हम दोनों सींचे जावें ॥४॥

    भावार्थ - आचार्य और जिज्ञासु ब्रह्मचारी परमात्मा की शरण लेकर सत्त्व, रज और तम तीनों गुणों द्वारा भूर्, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः और सत्य इन सात अवस्थाओं से सूक्ष्म और स्थूल पदार्थों को जानकर मोक्ष पद प्राप्त करके सदा वृद्धि करें ॥४॥

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