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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 6
    सूक्त - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९२

    अव॑ स्वराति॒ गर्ग॑रो गो॒धा परि॑ सनिष्वणत्। पिङ्गा॒ परि॑ चनिष्कद॒दिन्द्रा॑य॒ ब्रह्मोद्य॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अव॑ । स्वा॒रा॒ति॒ । गर्ग॑र: । गो॒धा । परि॑ । स॒नि॒व॒न॒त् ॥ पिङ्गा॑ । परि॑ । च॒नि॒स्क॒द॒त् । इन्द्रा॑य । ब्रह्म॑ । उत्ऽय॑तम् ॥९२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अव स्वराति गर्गरो गोधा परि सनिष्वणत्। पिङ्गा परि चनिष्कददिन्द्राय ब्रह्मोद्यतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अव । स्वाराति । गर्गर: । गोधा । परि । सनिवनत् ॥ पिङ्गा । परि । चनिस्कदत् । इन्द्राय । ब्रह्म । उत्ऽयतम् ॥९२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] के लिये (उद्यतम्) ऊँचे किये हुए (ब्रह्म) वेदज्ञान का (गर्गरः) गर्गर [सारंगी आदि बाजा] (अव स्वराति) स्वर आलापे, (गोधा) गोधा [वीणा आदि बाजा] (परि सनिष्वणत्) बोल बोले, और (पिङ्गा) पिङ्गा [धनुष की दृढ़ डोरी] (परि चनिष्कदत्) टङ्कार करे ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्यों को योग्य है कि घर के बीच उत्सवों में और युद्धक्षेत्र के बीच संग्रामों में परमात्मा का स्मरण भली-भाँति करते रहें ॥६॥

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