अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 3
इन्द्रा॑य॒ गाव॑ आ॒शिरं॑ दुदु॒ह्रे व॒ज्रिणे॒ मधु॑। यत्सी॑मुपह्व॒रे वि॒दत् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑य । गाव॑: । आ॒ऽशिर॑म् । दु॒दु॒ह्रे । व॒ज्रिणे॑ । मधु॑ ॥ यत् । सी॒म् । उ॒प॒ऽह्व॒रे । वि॒दत् ॥९२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राय गाव आशिरं दुदुह्रे वज्रिणे मधु। यत्सीमुपह्वरे विदत् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राय । गाव: । आऽशिरम् । दुदुह्रे । वज्रिणे । मधु ॥ यत् । सीम् । उपऽह्वरे । विदत् ॥९२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 3
विषय - १-३ राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ -
(वज्रिणे) वज्रधारी (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] के लिये (गावः) वेदवाणियों ने (आशिरम्) सेवने वा पकाने योग्य पदार्थ [दूध, दही, घी आदि] को और (मधु) मधुविद्या [यथार्थ ज्ञान] को (दुदुह्रे) भर दिया है। (यत्) जबकि उसने [उन वेदवाणियों को] (उपह्वरे) अपने पास (सीम्) सब प्रकार (विदत्) पाया ॥३॥
भावार्थ - ऐश्वर्यवान् पुरुष वेदवाणियों से सुशिक्षित होकर दूध आदि, भोग्य पदार्थ प्राप्त करके यथार्थ ज्ञान बढ़ावें ॥३॥
टिप्पणी -
१-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥