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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 7
    सूक्त - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९२

    आ यत्पत॑न्त्ये॒न्य: सु॒दुघा॒ अन॑पस्फुरः। अ॑प॒स्फुरं॑ गृभायत॒ सोम॒मिन्द्रा॑य॒ पात॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । यत् । पत॑न्ति । ए॒न्य॑: । सु॒ऽदुघा॑: । अन॑पऽस्‍फुर: ॥ अ॒प॒ऽस्फुर॑म् । गृ॒भा॒य॒त॒ । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । पात॑वे ॥९२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ यत्पतन्त्येन्य: सुदुघा अनपस्फुरः। अपस्फुरं गृभायत सोममिन्द्राय पातवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । यत् । पतन्ति । एन्य: । सुऽदुघा: । अनपऽस्‍फुर: ॥ अपऽस्फुरम् । गृभायत । सोमम् । इन्द्राय । पातवे ॥९२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (यत्) जब (एन्यः) गतिवाली, (सुदुघाः) अच्छे प्रकार कामनाएँ पूरी करनेवाली, (अनपस्फुरः) निश्चल बुद्धियाँ (आ पतन्ति) आ जावें, [त्ब] (अपस्फुरम्) अत्यन्त बढ़े हुए (सोमम्) उत्पन्न करनेवाले परमात्मा को (इन्द्राय) बड़े ऐश्वर्य की (पातवे) रक्षा के लिये (गृभायत) तुम ग्रहण करो ॥७॥

    भावार्थ - मनुष्य सबमें गतिवाली उत्तम बुद्धि को प्राप्त होकर परमेश्वर का आश्रय लेकर अपना ऐश्वर्य बढ़ावें ॥७॥

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