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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 18
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    शि॒वौ ते॑ स्तां व्रीहिय॒वाव॑बला॒साव॑दोम॒धौ। ए॒तौ यक्ष्मं॒ वि बा॑धेते ए॒तौ मु॑ञ्चतो॒ अंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒वौ । ते॒ । स्ता॒म् । व्री॒हि॒ऽय॒वौ । अ॒ब॒ला॒सौ । अ॒दो॒म॒धौ । ए॒तौ । यक्ष्म॑म् । वि । बा॒धे॒ते॒ इति॑ । ए॒तौ । मु॒ञ्च॒त॒: । अंह॑स: ॥२.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिवौ ते स्तां व्रीहियवावबलासावदोमधौ। एतौ यक्ष्मं वि बाधेते एतौ मुञ्चतो अंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिवौ । ते । स्ताम् । व्रीहिऽयवौ । अबलासौ । अदोमधौ । एतौ । यक्ष्मम् । वि । बाधेते इति । एतौ । मुञ्चत: । अंहस: ॥२.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 18

    पदार्थ -
    [हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (व्रीहियवौ) चावल और जौ (शिवौ) मङ्गल करनेवाले, (अबलासौ) बल के न गिरानेवाले और (अदोमधौ) भोजन में हर्ष करनेवाले (स्ताम्) हों। (एतौ) यह दोनों (यक्ष्मम्) राजरोग को (वि) विशेष करके (बाधेते) हटाते हैं, (एतौ) यह दोनों (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चतः) छुड़ाते हैं ॥१८॥

    भावार्थ - मनुष्यों को चावल और जौ आदि सात्त्विक अन्न का भोजन प्रसन्न होकर करना चाहिये, जिससे वह पुष्टिकारक हो ॥१८॥

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