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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 20
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त

    अह्ने॑ च त्वा॒ रात्र॑ये चो॒भाभ्यां॒ परि॑ दद्मसि। अ॒राये॑भ्यो जिघ॒त्सुभ्य॑ इ॒मं मे॒ परि॑ रक्षत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अह्ने॑ । च॒ । त्वा॒ । रात्र॑ये । च॒ । उ॒भाभ्या॑म् । परि॑ । द॒द्म॒सि॒ । अ॒राये॑भ्य: । जि॒घ॒त्सुऽभ्य॑: । इ॒मम् । मे॒ । परि॑ । र॒क्ष॒त॒ ॥२.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अह्ने च त्वा रात्रये चोभाभ्यां परि दद्मसि। अरायेभ्यो जिघत्सुभ्य इमं मे परि रक्षत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अह्ने । च । त्वा । रात्रये । च । उभाभ्याम् । परि । दद्मसि । अरायेभ्य: । जिघत्सुऽभ्य: । इमम् । मे । परि । रक्षत ॥२.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 20

    पदार्थ -
    (त्वा) तुझे (उभाभ्याम्) दोनों (अह्ने) दिन (च च) और (रात्रये) रात्रि को (परि दद्मसि) हम सौंपते हैं। (अरायेभ्यः) निर्दानी और (जिघत्सुभ्यः) खाना चाहनेवाले लोगों से (इमम्) इस [पुरुष] को (मे) मेरे लिये (परि) सब प्रकार (रक्षत) तुम बचाओ ॥२०॥

    भावार्थ - मनुष्य प्रकाश अन्धकार और समय कुसमय का विचार करके शत्रुओं से परस्पर रक्षा करें ॥२०॥

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