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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 17
    ऋषिः - अत्रिर्ऋषिः देवता - विश्वेदेवा गृहपतयो देवताः छन्दः - स्वराट आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    धा॒ता रा॒तिः स॑वि॒तेदं जु॑षन्तां प्र॒जाप॑तिर्निधि॒पा दे॒वोऽअ॒ग्निः। त्वष्टा॒ विष्णुः॑ प्र॒जया॑ सꣳररा॒णा यज॑मानाय॒ द्रवि॑णं दधात॒ स्वाहा॑॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता। रा॒तिः। स॒वि॒ता। इदम्। जु॒ष॒न्ता॒म्। प्र॒जा॑पति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः। नि॒धि॒पा इति॑ निधि॒ऽपाः। दे॒वः। अ॒ग्निः। त्वष्टा॑। विष्णुः॑। प्र॒जयेति॑ प्र॒ऽजया॑। स॒ꣳर॒रा॒णा इति॑ सम्ऽर॒रा॒णाः। यज॑मानाय। द्रवि॑णम्। द॒धा॒त॒। स्वाहा॑ ॥१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता रातिः सवितेदञ्जुषन्ताम्प्रजापतिर्निधिपा देवो अग्निः । त्वष्टा विष्णुः प्रजया सँरराणा यजमानाय द्रविणन्दधात स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    धाता। रातिः। सविता। इदम्। जुषन्ताम्। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः। निधिपा इति निधिऽपाः। देवः। अग्निः। त्वष्टा। विष्णुः। प्रजयेति प्रऽजया। सꣳरराणा इति सम्ऽरराणाः। यजमानाय। द्रविणम्। दधात। स्वाहा॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 17
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে আপ্ত অত্যুত্তম বিদ্বান্গণ ! আপনাদের সুমতিতে প্রবৃত্ত আমরা আপনাদের মধ্যে (সুদত্তঃ) বিদ্যা দান দ্বারা বিজ্ঞান দাতা এবং (ত্বষ্টা) অবিদ্যাদি দোষ নষ্টকারী বিদ্বান্ আমাদেরকে (সংবর্চ্চসা) উত্তম দিন ও (পয়সা) রাত্রি দ্বারা (সংশিবেন) অতি কল্যাণকারক (মনসা) বিজ্ঞান দ্বারা (য়ৎ) যে (তন্বঃ) শরীর দ্বারা ক্ষতিকারক কর্ম্মকে (অনুমার্ষ্টু) দূর করেন এবং (রায়ঃ) পুষ্টিকারক পদার্থকে (বিদধাতু) প্রাপ্ত করান সেই এবং সেই সব পদার্থ সকলকে (সমগন্মহি) প্রাপ্ত হউন ॥ ১৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- মনুষ্যের উচিত যে, দিনরাত উত্তম সজ্জনদিগের সঙ্গ দ্বারা ধর্মার্থ কাম ও মোক্ষের সিদ্ধি করিতে থাকে ॥ ১৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - সং বর্চ॑সা॒ পয়॑সা॒ সং ত॒নূভি॒রগ॑ন্মহি॒ মন॑সা॒ সꣳ শি॒বেন॑ ।
    ত্বষ্টা॑ সু॒দত্রো॒ বি দ॑ধাতু॒ রায়োऽনু॑ মার্ষ্টু ত॒ন্বো᳕ য়দ্বিলি॑ষ্টম্ ॥ ১৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - সং বর্চসা ইত্যস্যাত্রির্ঋষিঃ । গৃহপতির্দেবতা । বিরাডার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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