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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 130

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 20
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    उ॒यं य॒कांश॑लोक॒का ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒यम् । य॒कांशलोक॒का ॥१३०.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उयं यकांशलोकका ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उयम् । यकांशलोकका ॥१३०.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 20

    टिप्पणीः - २०−(उयम्) अव्ययम्। निश्चयेन (यकांशलोकका) कृञादिभ्यः संज्ञायां वुन्। उ० ।३। यत ताडने-वुन्, स च डित्+अंश विभाजने-अच्। कृञादिभ्यः०। उ० ।३। लोक दर्शने-वुन्, विभक्तेराकारः। यकस्य यातकस्य महापीडकस्य अंशस्य लोकको दर्शयिता ॥

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