यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 54
ऋषिः - गालव ऋषिः
देवता - इन्दु र्देवता
छन्दः - भुरिगार्ष्युष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
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दि॒वो मू॒र्द्धासि॑ पृथि॒व्या नाभि॒रूर्ग॒पामोष॑धीनाम्। वि॒श्वायुः॒ शर्म॑ स॒प्रथा॒ नम॑स्प॒थे॥५४॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वः। मू॒र्द्धा। अ॒सि॒। पृ॒थि॒व्याः। नाभिः॑। ऊर्क्। अ॒पाम्। ओष॑धीनाम्। वि॒श्वायु॒रिति॑ वि॒श्वऽआ॑युः। शर्म॑। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑। नमः॑। प॒थे ॥५४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवो मूर्धासि पृथिव्या नाभिरूर्गपामोषधीनाम् । विश्वायुः शर्म सप्रथा नमस्पथे ॥
स्वर रहित पद पाठ
दिवः। मूर्द्धा। असि। पृथिव्याः। नाभिः। ऊर्क्। अपाम्। ओषधीनाम्। विश्वायुरिति विश्वऽआयुः। शर्म। सप्रथा इति सऽप्रथाः। नमः। पथे॥५४॥
विषय - 'गालव' का जीवन
पदार्थ -
१. हे प्रभु की ओर चलनेवाले और प्रभु का ही छोटा रूप बननेवाले 'गालव'! तू (दिवः मूर्द्धा असि) = प्रकाश का शिखर है। ज्ञान के दृष्टिकोण से ऊँचे-से-ऊँचे स्थान में पहुँचने का प्रयत्न करता है। २. (पृथिव्याः नाभिः) = तू इस शरीर का [ पृथिवी शरीरम् ] बाँधनेवाला है [नह बन्धने], अर्थात् शरीर को पूर्णरूप से नियन्त्रित करता है। शरीर को वशीभूत रखता हुआ ही तो तू स्वस्थ बनता है और ज्ञान प्राप्ति की अनुकूलता को प्राप्त करता है। ३. (अपाम्) = जलों के तथा (ओषधीनाम्) = ओषधियों के (ऊर्क्) = बल व प्राणशक्तिवाला तू होता है। जलों व ओषधियों के प्रयोग से तू अपने अन्दर बल व प्राणशक्ति को प्राप्त करता है। ४. (विश्वायु:) = तू पूर्ण जीवनवाला होता है। १०० वर्ष के दीर्घायुष्य को प्राप्त करता है तथा 'शरीर, मन व बुद्धि' तीनों का विकास करके पूर्ण जीवनवाला होता है । ५. जीवन को पूर्ण बनाकर (शर्म) = तू शरण बनता है। दुःखी पुरुषों के दुःख का हरण करने के कारण उस दुःखी नरसमूह [नार] का अयन-शरण बनता हुआ तू [नारायण] हो जाता है। ६. (सप्रथा:) = तू सदा विस्तार के साथ होता है। अपने मन को कभी तंग नहीं होने देता। ७. इस प्रकार के जीवनवाला बनकर तू औरों के जीवन के लिए मार्गदर्शक बनता है। (पथे) = इस मार्ग बने हुए तेरे लिए (नमः) = नमस्कार हो, तुझे आदर प्राप्त हो । अथवा इस प्रकार मार्ग बने हुए तेरे लिए नम्रता हो। कहीं लोगों से प्राप्त आदर के कारण तुझमें 'गर्व' न आ जाए।
भावार्थ - भावार्थ- प्रभु की ओर चलनेवाला व्यक्ति १. ज्ञान के शिखर पर पहुँचने का प्रयत्न करता है। २. शरीर को व्रतों के बन्धन में बाँधता है। ३. जलों व ओषधियों के प्रयोग से शक्तिशाली बनता है। ४. पूर्ण जीवनवाला बनता है । ५. दुःखी पुरुषों का शरण होता है । ६. हृदय को विशाल बनाता है। ७. लोगों के लिए आदर्श बनकर विनीत बना रहता है।
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