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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 47
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    क्षि॒प्रं वै तस्या॒हन॑ने॒ गृध्राः॑ कुर्वत ऐल॒बम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षि॒प्रम् । वै । तस्य॑ । आ॒ऽहन॑ने । गृध्रा॑: । कु॒र्व॒ते॒ । ऐ॒ल॒बम् ॥१०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षिप्रं वै तस्याहनने गृध्राः कुर्वत ऐलबम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षिप्रम् । वै । तस्य । आऽहनने । गृध्रा: । कुर्वते । ऐलबम् ॥१०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 47

    पदार्थ -

    १. (क्षिप्रम्) = शीघ्र ही (वै) = निश्चय से (तस्य) = उस ब्रह्मज्य के (आहनने) = मारे जाने पर (गृधा:) = गिद्ध (ऐलबम्) = [Noise, cry] कोलाहल (कुर्वते) = करते हैं। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य आदहनं परि) = उस ब्रह्मण्य के भस्मीकरण स्थान के चारों ओर (केशिनी:) = खुले बालोंवाली, (पाणिना उरसि आजाना:) = हाथ से छाती पर आघात करती हुई, (पापं ऐलबम् कुर्वाणा:) = अशुभ शब्द 'क्रन्दन-ध्वनि' करती हुई स्त्रियाँ (नृत्यन्ति) = नाचती हैं। २. (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य) = उसके (वास्तषु) = घरों में (वृकाः ऐलबम् कुर्वते) = भेड़िये शोर करने लगते हैं, अर्थात् उसका घर उजड़कर भेड़ियों का निवासस्थान बन जाता है। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य प्रच्छन्ति) = उसके विषय में पूछते हैं (यत्) = कि (तत् आसीत्) = ओह ! इसका तो वह अवर्णनीय वैभव था (इदं नु तत् इति) = क्या यह वही है-बस, वह सब यही खण्डहर होकर ढेर हुआ पड़ा है।

    भावार्थ -

    ब्रह्मज्य का विनाश हो जाता है। उसका घर उजड़ जाता है-सब ऐश्वर्य समाप्त हो जाता है।

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