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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 48
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - आर्ष्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
क्षि॒प्रं वै तस्या॒दह॑नं॒ परि॑ नृत्यन्ति के॒शिनी॑राघ्ना॒नाः पा॒णिनोर॑सि कुर्वा॒णाः पा॒पमै॑ल॒बम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । आ॒ऽदह॑नम् । परि॑। नृ॒त्य॒न्ति॒ । के॒शिनी॑: । आ॒ऽघ्ना॒ना: । पा॒णिना॑ । उर॑सि । कु॒र्वा॒णा: । पा॒पम् । ऐ॒ल॒बम् ॥१०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षिप्रं वै तस्यादहनं परि नृत्यन्ति केशिनीराघ्नानाः पाणिनोरसि कुर्वाणाः पापमैलबम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । आऽदहनम् । परि। नृत्यन्ति । केशिनी: । आऽघ्नाना: । पाणिना । उरसि । कुर्वाणा: । पापम् । ऐलबम् ॥१०.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 48
विषय - ब्रह्मज्य की अन्त्येष्टि
पदार्थ -
१. (क्षिप्रम्) = शीघ्र ही (वै) = निश्चय से (तस्य) = उस ब्रह्मज्य के (आहनने) = मारे जाने पर (गृधा:) = गिद्ध (ऐलबम्) = [Noise, cry] कोलाहल (कुर्वते) = करते हैं। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य आदहनं परि) = उस ब्रह्मण्य के भस्मीकरण स्थान के चारों ओर (केशिनी:) = खुले बालोंवाली, (पाणिना उरसि आजाना:) = हाथ से छाती पर आघात करती हुई, (पापं ऐलबम् कुर्वाणा:) = अशुभ शब्द 'क्रन्दन-ध्वनि' करती हुई स्त्रियाँ (नृत्यन्ति) = नाचती हैं। २. (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य) = उसके (वास्तषु) = घरों में (वृकाः ऐलबम् कुर्वते) = भेड़िये शोर करने लगते हैं, अर्थात् उसका घर उजड़कर भेड़ियों का निवासस्थान बन जाता है। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य प्रच्छन्ति) = उसके विषय में पूछते हैं (यत्) = कि (तत् आसीत्) = ओह ! इसका तो वह अवर्णनीय वैभव था (इदं नु तत् इति) = क्या यह वही है-बस, वह सब यही खण्डहर होकर ढेर हुआ पड़ा है।
भावार्थ -
ब्रह्मज्य का विनाश हो जाता है। उसका घर उजड़ जाता है-सब ऐश्वर्य समाप्त हो जाता है।
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