अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 48
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - आर्ष्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
71
क्षि॒प्रं वै तस्या॒दह॑नं॒ परि॑ नृत्यन्ति के॒शिनी॑राघ्ना॒नाः पा॒णिनोर॑सि कुर्वा॒णाः पा॒पमै॑ल॒बम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । आ॒ऽदह॑नम् । परि॑। नृ॒त्य॒न्ति॒ । के॒शिनी॑: । आ॒ऽघ्ना॒ना: । पा॒णिना॑ । उर॑सि । कु॒र्वा॒णा: । पा॒पम् । ऐ॒ल॒बम् ॥१०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षिप्रं वै तस्यादहनं परि नृत्यन्ति केशिनीराघ्नानाः पाणिनोरसि कुर्वाणाः पापमैलबम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । आऽदहनम् । परि। नृत्यन्ति । केशिनी: । आऽघ्नाना: । पाणिना । उरसि । कुर्वाणा: । पापम् । ऐलबम् ॥१०.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(क्षिप्रम्) शीघ्र (वै) निश्चय करके (तस्य) उस [वेदनिन्दक] के (आदहनं परि) दाह स्थान के आस-पास (केशिनीः) लम्बे केशोंवाली स्त्रियाँ (पाणिना) हाथ से (उरसि) छाती (आघ्नानाः) पीटती हुईं और (पापम्) अशुभ (ऐलबम्) विलाप ध्वनि (कुर्वाणाः) करती हुईं (नृत्यन्ति) डोलती हैं ॥४८॥
भावार्थ
जब वेदनिन्दक पुरुष खोटे कर्मों के कारण क्लेश के साथ मृत्यु पाता है, तब स्त्री आदि उसके सब कुटुम्बी क्लेश में पड़ते हैं ॥४८॥
टिप्पणी
४८−(क्षिप्रम्) (वै) एव (तस्य) वेदनिन्दकस्य (आदहनम्) भस्मीकरणस्थानम् (परि) प्रति (नृत्यन्ति) इतस्ततो विचरन्ति (केशिनीः) दीर्घकेशवत्यः (आघ्नानाः) हन हिंसागत्योः−चानश्। ताडयन्त्यः (पाणिना) हस्तेन (उरसि) वक्षसि (कुर्वाणाः) कुर्वत्यः (पापम्) अशुभम् (ऐलबम्) म० ४७। विलापध्वनिम् ॥
विषय
ब्रह्मज्य की अन्त्येष्टि
पदार्थ
१. (क्षिप्रम्) = शीघ्र ही (वै) = निश्चय से (तस्य) = उस ब्रह्मज्य के (आहनने) = मारे जाने पर (गृधा:) = गिद्ध (ऐलबम्) = [Noise, cry] कोलाहल (कुर्वते) = करते हैं। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य आदहनं परि) = उस ब्रह्मण्य के भस्मीकरण स्थान के चारों ओर (केशिनी:) = खुले बालोंवाली, (पाणिना उरसि आजाना:) = हाथ से छाती पर आघात करती हुई, (पापं ऐलबम् कुर्वाणा:) = अशुभ शब्द 'क्रन्दन-ध्वनि' करती हुई स्त्रियाँ (नृत्यन्ति) = नाचती हैं। २. (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य) = उसके (वास्तषु) = घरों में (वृकाः ऐलबम् कुर्वते) = भेड़िये शोर करने लगते हैं, अर्थात् उसका घर उजड़कर भेड़ियों का निवासस्थान बन जाता है। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य प्रच्छन्ति) = उसके विषय में पूछते हैं (यत्) = कि (तत् आसीत्) = ओह ! इसका तो वह अवर्णनीय वैभव था (इदं नु तत् इति) = क्या यह वही है-बस, वह सब यही खण्डहर होकर ढेर हुआ पड़ा है।
भावार्थ
ब्रह्मज्य का विनाश हो जाता है। उसका घर उजड़ जाता है-सब ऐश्वर्य समाप्त हो जाता है।
भाषार्थ
(क्षिप्रम् वै) निश्चय से शीघ्र ही (तस्य) उस क्षत्रिय के (आदहनम् परि) जलती चिता के चारों ओर (पाणिना) हाथों द्वारा (उरसि आघ्नानाः) छातियां पीटती हुई, (केशिनीः) बिखरे केशों वाली स्त्रियां (पापम्, ऐलवम्, कुर्वाणाः) बुरा विलास करती हुई (नृत्यन्ति) गात्र विशेष करती हैं।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(क्षिप्रं वै) और शीघ्र ही (तस्य आदहनं परि) उस की जलती चिता के चारों ओर (केशिनीः) लम्बे लम्बे बालों वाली औरतें, बाल खोल खोल कर उसके मरने का विलाप करती हुईं (पाणिना) हाथों से (उरसि) छातियों पर (आध्नानाः) दुहत्थड़ मार कर रोती चीखती हुई (पापम्) पापसूचक, या घोर (ऐलबम्) आर्तनाद (कुर्वाणाः) करती हुई (परिनृत्यन्ति) विकृत नाच करती हैं।
टिप्पणी
‘एलवम्’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवते च पूर्वोक्ते। ४७, ४९, ५१-५३, ५७-५९, ६१ प्राजापत्यानुष्टुभः, ४८ आर्षी अनुष्टुप्, ५० साम्नी बृहती, ५४, ५५ प्राजापत्या उष्णिक्, ५६ आसुरी गायत्री, ६० गायत्री। पञ्चदशर्चं षष्टं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
And soon after on his cremation women with hair dishevelled enact the dance of death, beating their breast with hands and raising the wail of mourning and loss.
Translation
Quickly, indeed, about his place of burning dance the longhaired women, beating on the breast with the hand, making an evil din.
Translation
Quickly around his burning pyre women with unlicked hair striking their hand upon their breast uttering their evil striks dance.
Translation
Quickly, around his funeral fire hover women with dishevelled locks, striking the hand upon the breast and uttering their ominous shrieks.
Footnote
His: A reviler of the Vedas.,
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४८−(क्षिप्रम्) (वै) एव (तस्य) वेदनिन्दकस्य (आदहनम्) भस्मीकरणस्थानम् (परि) प्रति (नृत्यन्ति) इतस्ततो विचरन्ति (केशिनीः) दीर्घकेशवत्यः (आघ्नानाः) हन हिंसागत्योः−चानश्। ताडयन्त्यः (पाणिना) हस्तेन (उरसि) वक्षसि (कुर्वाणाः) कुर्वत्यः (पापम्) अशुभम् (ऐलबम्) म० ४७। विलापध्वनिम् ॥
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