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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आर्च्येकपदानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    110

    आयु॑श्च रू॒पं च॒ नाम॑ च की॒र्तिश्च॑ प्रा॒णश्चा॑पा॒नश्च॒ चक्षु॑श्च॒ श्रोत्रं॑ च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आयु॑: । च॒ । रू॒पम् । च॒ । नाम॑ । च॒ । की॒र्ति: । च॒ । प्रा॒ण: । च॒ । अ॒पा॒न: । च॒ । चक्षु॑: । च॒ । श्रोत्र॑म् । च॒ ॥६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयुश्च रूपं च नाम च कीर्तिश्च प्राणश्चापानश्च चक्षुश्च श्रोत्रं च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आयु: । च । रूपम् । च । नाम । च । कीर्ति: । च । प्राण: । च । अपान: । च । चक्षु: । च । श्रोत्रम् । च ॥६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।

    पदार्थ

    (च) और (आयुः) जीवन [ब्रह्मचर्यसेवन और वीर्यरक्षण से जीवन का बढ़ाना], (च) और (रूपम्) रूप [शरीरपुष्टि से सुन्दरता], (च) और (नाम) नाम [सत्कर्मों से प्रसिद्धि], (च) और (कीर्तिः) कीर्ति [श्रेष्ठ गुणों के ग्रहण के लिये ईश्वर के गुणों का कीर्तन और विद्यादान आदि सत्य आचरणों से प्रशंसा को स्थिर रखना], (च) और (प्राणः) प्राण वायु (च) और (अपानः) अपान वायु (च) और (चक्षुः) दृष्टि [प्रत्यक्ष, अनुमान और उपमान प्रमाण], (च) और (श्रोत्रम्) श्रवण [शब्द, ऐतिह्य, अर्थापत्ति, संभव और अभाव प्रमाण] ॥९॥

    भावार्थ

    जो राजा के कुप्रबन्ध से वेदविद्या प्रचार से रुक जाती है, अविद्या के फैलने से वह राजा और उसका राज्य सब नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है ॥७-१०॥

    टिप्पणी

    ९−(आयुः) ब्रह्मचर्यसेवनेन वीर्यरक्षणेन च जीवनवर्धनम् (च) (रूपम्) शरीरपुष्ट्या सौन्दर्यम् (च) (नाम) सत्कर्मानुष्ठानेन प्रसिद्धिः (च) (कीर्तिः) सद्गुणग्रहणार्थमीश्वरगुणानां कीर्तनं विद्यादानादिसत्याचरणेन स्वप्रशंसा स्थिरीकरणं च (च) (प्राणः) (च) (अपानः) (च) (चक्षुः) दर्शनम्। प्रत्यक्षानुमानोपमानप्रमाणजातम् (च) (श्रोत्रम्) श्रवणम्। शब्दैतिह्यार्थापत्तिसंभवाभावप्रमाणजातम् (च) ॥

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    विषय

    ओज व तेज आदि का विनाश

    पदार्थ

    १. (ओजः च तेज: च) = ओज और तेज, (सहः च बलं च) = शत्रुमर्षणशक्ति और बल, (वाक् च इन्द्रियं च) = वाणी की शक्ति तथा वीर्य, (श्री: च धर्म: च) = श्री और धर्म। इसीप्रकार (ब्रह्म च क्षत्रं च) = ज्ञान और बल, (राष्ट्रं च विश: च) = राज्य और प्रजा, (त्विषिः च यश: च) = दीप्ति व यश, (वर्चः च द्रविणं च) = रोगनिरोधक शक्ति [Vitality] और कार्यसाधक धन तथा आयुः च रूपं च-दीर्घजीवन व सौन्दर्य, (नाम च कीर्तिश्च) = नाम और यश, (प्राणः च अपान: च) = प्राणापानशक्ति [बल का स्थापन व दोष का निराकरण करनेवाली शक्ति], (चक्षुः च श्रोत्रं च) = दृष्टिशक्ति व श्रवणशक्ति तथा इनके साथ (पयः च रस: च) = गौ आदि का दूध और ओषधियों का रस, (अन्नं च अन्नाद्यं च) = अन्न और अन्न खाने का सामर्थ्य, (प्रातं च सत्यं च) = भौतिक क्रियाओं का ठीक समय व स्थान पर होना तथा व्यवहार में सत्यता, (इष्टं च पूर्त च) = यज्ञ तथा 'वापी, कूप व तड़ाग' आदि का निर्माण, (प्रजा च पशव: च) = सन्तान व गौ आदि पशु। २. (तानि सर्वाणि) = ये सब उस (क्षत्रियस्य) = क्षत्रिय के (अपकामन्ति) = दूर चले जाते हैं व विनष्ट हो जाते हैं जोकि (ब्रह्मगवीम् आददानस्य) = ब्रह्मगवी [वेदधनु] का छेदन करता है और (ब्राह्मणां जिनत:) = ब्राह्मण को पीड़ित करता है।

    भावार्थ

    ब्रह्मगवी का छेदन करनेवाला व ब्राह्मण को पीड़ित करनेवाला क्षत्रिय ओज व तेज आदि को विनष्ट कर बैठता है।

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    भाषार्थ

    आयु और रूप, नाम और कीर्ति, प्राण और अपान, दृष्टिशक्ति और श्रवणशक्ति ॥९॥

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (ब्राह्मणं जिनतः) ब्राह्मण पर बलात्कार करने हारे और उससे (ब्रह्मगवीम् आददानस्य) ब्रह्मगवी, ब्रह्म = वेदवाणी को बलात् छीनने वाले (क्षत्रियस्य) क्षत्रिय का (ओजः च तेजः च) ओज, प्रभाव और तेज, (सहः च बलम् च) ‘सहः’ दूसरे को पराजित करने का सामर्थ्य और बल, सेनाबल (वाक् च इन्द्रियम् च) वाणी और इन्द्रियें, (श्रीः च धर्मः च) लक्ष्मी और धर्म, (ब्रह्म च क्षत्रं च) ब्रह्मबल, ब्राह्मणगण, क्षात्रबल उसके सहायक क्षत्रिय, (राष्ट्रं च दिशः च) उसका राष्ट्र और उसके अधीन वैश्य प्रजाएं (त्विषिः च यशः च) उसकी त्विट् कान्ति दीप्ति और यश, ख्याति (वर्चः च द्रविणम् च) वर्चस्, वीर्य और धन (आयुः च रूपं च) आयु और रूप (नाम च कीर्त्तिः च) नाम और कीर्ति, (प्राणः च अपानः च) प्राण और अपान, (चक्षुः च श्रोत्रं च) चक्षु, दर्शनशक्ति और श्रोत्र, श्रवणशक्ति। (पयः च रसः च) दूध और जल (अन्नं च, अन्नाद्यं च) अन्न और अन्न के भोग करने का सामर्थ्य (ऋतं च सत्यं च) ऋत और सत्य (इष्टं च पूर्वं च) इष्ठ, पूर्त, यज्ञ याग और कूपतड़ादि धर्म के सब कार्य और (प्रजा च पशवः च) प्रजाएं और पशु (तानि सर्वाण) वे सब (अपक्रामन्ति) उसको छोड़ कर चले जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    ‘आयुश्च श्रोत्रं च’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाचार्य ऋषिः। सप्त पर्यायसूक्तानि। ब्रह्मगवी देवता। तत्र प्रथमः पर्यायः। १, ६ प्राज्यापत्याऽनुष्टुप, २ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप्, ३ चतुष्पदा स्वराड् उष्णिक्, ४ आसुरी अनुष्टुप्, ५ साम्नी पंक्तिः। षडृचं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Cow

    Meaning

    And his life, and beauty, and name, and fame, and pranic energy, and apana energy, and eye, and ear,

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    Translation

    And life-time, and form, and name, and fame, and breath, and expiration, and sight, and hearing, -

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    Translation

    Let long life, form, name, fame, inbreathing and expiration eyes and ears (serve you well).

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    Translation

    Long-life and physical beauty, and name and fame, in-breathing and expiration, and sight, and hearing.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(आयुः) ब्रह्मचर्यसेवनेन वीर्यरक्षणेन च जीवनवर्धनम् (च) (रूपम्) शरीरपुष्ट्या सौन्दर्यम् (च) (नाम) सत्कर्मानुष्ठानेन प्रसिद्धिः (च) (कीर्तिः) सद्गुणग्रहणार्थमीश्वरगुणानां कीर्तनं विद्यादानादिसत्याचरणेन स्वप्रशंसा स्थिरीकरणं च (च) (प्राणः) (च) (अपानः) (च) (चक्षुः) दर्शनम्। प्रत्यक्षानुमानोपमानप्रमाणजातम् (च) (श्रोत्रम्) श्रवणम्। शब्दैतिह्यार्थापत्तिसंभवाभावप्रमाणजातम् (च) ॥

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