अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 21
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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मृ॒त्युर्हि॑ङ्कृण्व॒त्युग्रो दे॒वः पुच्छं॑ प॒र्यस्य॑न्ती ॥
स्वर सहित पद पाठमृ॒त्यु: । हि॒ङ्कृ॒ण्व॒ती । उ॒ग्र: । दे॒व: । पुच्छ॑म् । प॒रि॒ऽअस्य॑न्ती ॥७.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
मृत्युर्हिङ्कृण्वत्युग्रो देवः पुच्छं पर्यस्यन्ती ॥
स्वर रहित पद पाठमृत्यु: । हिङ्कृण्वती । उग्र: । देव: । पुच्छम् । परिऽअस्यन्ती ॥७.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
वह [वेदवाणी] (हिङ्कृण्वती) [ब्रह्मचारी की] वृद्धि करती हुई (मृत्युः) [रोकनेवाले को] मृत्यु होती है, [उसकी] (पुच्छम्) भूल को (पर्यस्यन्ती) फेंक देती हुई वह (उग्रः) तेजस्वी (देवः) विजय चाहनेवाले [शूर के समान] होती है ॥२१॥
भावार्थ
जैसे-जैसे मनुष्य उग्र तप करके वेद का प्रकाश करते हैं, भूल करनेवाले पाखण्डियों का नाश होता जाता है ॥२१॥
टिप्पणी
२१−(मृत्युः) मरणं यथा (हिङ्कृण्वती) अ० ७।७३।८। हि गतिवृद्ध्योः−डि। गतिं वृद्धिं वा कुर्वती (उग्रः) प्रचण्डः (देवः) विजिगीषुर्यथा (पुच्छम्) पुच्छ प्रमादे प्रसादे च−अच्। प्रमादम् (पर्यस्यन्ती) सर्वतः क्षिपन्ती ॥
विषय
क्षुरपवि----शीर्षक्ति
पदार्थ
१. (ईक्षमाणा) = अत्याचरित यह ब्रह्मगवी सहायता के लिए इधर-उधर झाँकती हुई (क्षुरपवि:) = [The point of a spear] छुरे की नोक के समान हो जाती है। यह अत्याचारी की छाती में प्रविष्ट होकर उसे समास कर देती है। (वाश्यमाना) = सहायता के लिए पुकारती हुई यह (अभिस्फूर्जति) = चारों ओर मेघगर्जना के समान शब्द पैदा कर देती है। (हिङ्कृण्वती) = बंभारती हुई यह (मृत्यु:) = ब्रह्मज्य की मौत होती है। (पुच्छं पर्यस्यन्ती) = पूँछ फटकारती हुई यह ब्रह्मगवी उग्रः देवः-संहार करनेवाला काल [देव] ही बन जाती है। २. (कर्णौ वरीवर्जयन्ति) = [Tum away, avert] कानों को बारम्बार परे करती हुई यह ब्रह्मगवी (सर्वज्यानि:) = सब हानियों का कारण बनती है और (मेहन्ती) = मेहन [मूत्र] करती हुई (राजयक्ष्मः) = राजयक्ष्मा [क्षय] को पैदा करती है। (दुहामाना) = यदि यह ब्रह्मगवी दोही जाए. अर्थात् उसे भी धनार्जन का साधन बनाया जाए, तो यह (मेनि:) = वज्र ही हो जाती है और (दुग्धा) = दुग्ध हुई-हुई (शीर्षक्ति:) = सिरदर्द ही हो जाती है।
भावार्थ
ब्रह्मगवी पर किसी तरह का अत्याचार करना अनुचित है, अत्याचरित हुई-हुई यह अत्याचारी की हानि व मृत्यु का कारण बनती है। इसे अर्थप्राप्ति का साधन भी नहीं बनाना, अन्यथा यह एक सरदर्द ही हो जाती है।
भाषार्थ
(हिंकृण्वती) हिङ्कार अर्थात् धीमा "हिं" शब्द करती हुई गौ [घातक के लिये] (मृत्युः) मृत्युरूप है। (पुच्छ्म्) पूंछ को (पर्यस्यन्ती) सब ओर पटकती हुई (उग्रः देवः) उग्र देव अर्थात् रुद्ररूप है।
टिप्पणी
[हिङ्कार=="हिं" ऐसा धीमा शब्द करना। अति निर्बलता के कारण शब्दोच्चारण धीमा पड़ जाता है। घातक द्वारा चोट खाई हुई गौ की निर्बलावस्था को उस के "हिं" शब्द द्वारा सूचित किया है, जो कि मरणासन्न गौ का है। ऐसी अवस्था देख कर गोरक्षक भी घातक के लिये मृत्युरूप हो जाते हैं। मच्छरों और मक्खियों से तंग हुई गौ पूंछ को इधर-उधर पटकती रहती है। यह दोष राजवर्ग का है जो कि गौओं के स्वच्छ और सुखप्रद गोशालाओं का प्रबन्ध नहीं करते। गौओं के इस कष्ट को अनुभव कर गोरक्षक राजवर्ग के प्रति उग्ररूप हो कर रोष प्रकट करते हैं। गौ में सामर्थ्य न तो मृत्युरूप होने का है, और न उग्रदेव अर्थात् रुद्ररूप होने का]
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
ब्रह्मघाती के लिये वह (मृत्युः) मृत्यु रूप होकर (हिंकृण्वती) मानो बंभारती है। (उग्रः देवः) उग्र देव, काल होकर मानो (पुच्छं पर्यस्यन्ती) पूंछ फटकार रही होती है।
टिप्पणी
‘त्यु३ग्रो’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Challenging, she is death of the aggressor, raising and striking her tail, a violent supernatural power.
Translation
Death when uttering hing; the formidable god when slinging about her tail.
Translation
When she loweath she is like death and when he whisks her tails she is like powerful Ugra devasting fire.
Translation
Contributing to the welfare and prosperity of a Brahmchari, it is Death unto him who opposes it. It removes carelessness and negligence, acting like a fierce conquest loving hero.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२१−(मृत्युः) मरणं यथा (हिङ्कृण्वती) अ० ७।७३।८। हि गतिवृद्ध्योः−डि। गतिं वृद्धिं वा कुर्वती (उग्रः) प्रचण्डः (देवः) विजिगीषुर्यथा (पुच्छम्) पुच्छ प्रमादे प्रसादे च−अच्। प्रमादम् (पर्यस्यन्ती) सर्वतः क्षिपन्ती ॥
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