अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 50
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्नी बृहती
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
111
क्षि॒प्रं वै तस्य॑ पृच्छन्ति॒ यत्तदासी॑३दि॒दं नु ता३दिति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक्षि॒प्रम् । वै । तस्य॑ । पृ॒च्छ॒न्ति॒ । यत् । तत् । आसी॑३त् । इ॒दम् । नु । ता३त् । इति॑ ॥१,४॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षिप्रं वै तस्य पृच्छन्ति यत्तदासी३दिदं नु ता३दिति ॥
स्वर रहित पद पाठक्षिप्रम् । वै । तस्य । पृच्छन्ति । यत् । तत् । आसी३त् । इदम् । नु । ता३त् । इति ॥१,४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(क्षिप्रम्) शीघ्र (वै) निश्चय करके (तस्य) उस [वेदनिन्दक] के विषय में (पृच्छन्ति) लोग पूँछते हैं−“(नु) क्या (इदम्) यह [स्थान] (ता३त् इति) वही है, (यत्) जो (तत्) वह (आसी३त्) [पहिले] था” ॥५०॥
भावार्थ
जब वेदनिन्दक क्षणिक वृद्धि पाकर खोटे कर्मों से नष्ट हो जाता है, जिज्ञासु लोग उसका कारण खोजकर सत्य धर्म में दृढ़ होते हैं ॥५०॥
टिप्पणी
५०−(क्षिप्रम्) (वै) (तस्य) (पृच्छन्ति) जिज्ञासन्ते (यत्) स्थानम् (तत्) (आसी३त्) प्लुतरूपम्। भूतकाले वर्तमानमभवत् (इदम्) प्रत्यक्षम् (नु) प्रश्ने (ता३त्) प्लुतरूपम्। तदेव (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥
विषय
ब्रह्मज्य की अन्त्येष्टि
पदार्थ
१. (क्षिप्रम्) = शीघ्र ही (वै) = निश्चय से (तस्य) = उस ब्रह्मज्य के (आहनने) = मारे जाने पर (गृधा:) = गिद्ध (ऐलबम्) = [Noise, cry] कोलाहल (कुर्वते) = करते हैं। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य आदहनं परि) = उस ब्रह्मण्य के भस्मीकरण स्थान के चारों ओर (केशिनी:) = खुले बालोंवाली, (पाणिना उरसि आजाना:) = हाथ से छाती पर आघात करती हुई, (पापं ऐलबम् कुर्वाणा:) = अशुभ शब्द 'क्रन्दन-ध्वनि' करती हुई स्त्रियाँ (नृत्यन्ति) = नाचती हैं। २. (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य) = उसके (वास्तषु) = घरों में (वृकाः ऐलबम् कुर्वते) = भेड़िये शोर करने लगते हैं, अर्थात् उसका घर उजड़कर भेड़ियों का निवासस्थान बन जाता है। (क्षिप्रं वै) = शीघ्र ही निश्चय से (तस्य प्रच्छन्ति) = उसके विषय में पूछते हैं (यत्) = कि (तत् आसीत्) = ओह ! इसका तो वह अवर्णनीय वैभव था (इदं नु तत् इति) = क्या यह वही है-बस, वह सब यही खण्डहर होकर ढेर हुआ पड़ा है।
भावार्थ
ब्रह्मज्य का विनाश हो जाता है। उसका घर उजड़ जाता है-सब ऐश्वर्य समाप्त हो जाता है।
भाषार्थ
(क्षिप्रं वै) निश्चय से शीघ्र ही (तस्य) उस क्षत्रिय राजा के सम्बन्ध में प्रजाएं (पृच्छन्ति) पूछने लगती हैं कि (यत्) जो (तद्) वह राजा था, क्या (इदम्, नु) यह ही (तत्) वह है।
टिप्पणी
[अर्थात् वह तो शक्तिशाली राजा था वह ही श्मशाग्नि में जल रहा है क्या?]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(क्षिप्रं वै) और शीघ्र ही लोग (तस्य) उसके बारे में (पृच्छन्ति) आश्चर्य से ऐसे पूछा करते हैं (यत्) कि (तद आसीत्) ओह ! इसका तो वह अवर्णनीय वैभव था (इदं नु ता३त् इति) बस वह सब यही खण्डहर होकर ढेर हुआ पड़ा है।
टिप्पणी
‘किंतदासीदिति’ ह्विटनिकामितः पाठः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवते च पूर्वोक्ते। ४७, ४९, ५१-५३, ५७-५९, ६१ प्राजापत्यानुष्टुभः, ४८ आर्षी अनुष्टुप्, ५० साम्नी बृहती, ५४, ५५ प्राजापत्या उष्णिक्, ५६ आसुरी गायत्री, ६० गायत्री। पञ्चदशर्चं षष्टं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
And soon after, people ask about him: Is it that same as he was?
Translation
Quickly, indeed, they ask about him: what that was, is this now that?
Translation
Quickly the people ask about him who was he? Is he the same?
Translation
Quickly, the people ask about him, ‘Is this the ruined palace which he occupied.'Rend, rend to pieces, rend away, destroy, destroy him utterly.Destroy, O Vedic knowledge, revealed by God! the wretch who robs and wrongs the learned.
Footnote
(आङ्गिरस ) - हे अङ्गिरसा महाविदुषा परमेश्वरेणोपदिष्टे। Griffith translates Angirasi as the cow belonging to Angiras and his representatives, the priests.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५०−(क्षिप्रम्) (वै) (तस्य) (पृच्छन्ति) जिज्ञासन्ते (यत्) स्थानम् (तत्) (आसी३त्) प्लुतरूपम्। भूतकाले वर्तमानमभवत् (इदम्) प्रत्यक्षम् (नु) प्रश्ने (ता३त्) प्लुतरूपम्। तदेव (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥
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