अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 71
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - आसुरी पङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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सर्वा॒स्याङ्गा॒ पर्वा॑णि॒ वि श्र॑थय ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वा॑ । अ॒स्य॒ । अङ्गा॑ । पर्वा॑णि । वि । श्र॒थ॒य॒ ॥११.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वास्याङ्गा पर्वाणि वि श्रथय ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वा । अस्य । अङ्गा । पर्वाणि । वि । श्रथय ॥११.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(अस्य) उसके (सर्वा) सब (अङ्गा) अङ्गों और (पर्वाणि) जोड़ों को (वि श्रथय) ढीला कर दे ॥७१॥
भावार्थ
नीतिनिपुण धर्मज्ञ राजा वेदमार्ग पर चलकर वेदविमुख अत्याचारी लोगों को विविध प्रकार दण्ड देकर पीड़ा देवे ॥६८-७१॥
टिप्पणी
६८-७१−(लोमानि) (अस्य) ब्रह्मज्यस्य (सम्) सम्यक् (छिन्धि) भिन्धि (त्वचम्) चर्म (अस्य) (वि) वियुज्य (वेष्टय) आच्छादय (मांसानि) मांसखण्डानि (अस्य) (शातय) शद्लृ शातने−णिच्। शदेरगतौ तः। पा० ७।३।४२। दस्य तकारो णौ परतः। खण्डय (स्नावानि) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। ष्णा शौचे−वन्। वायुवाहिनाडिभेदान् (अस्य) (सं वृह) विनाशय (अस्थीनि) (अस्य) (पीडय) मर्दय (मज्जानम्) शरीरस्थधातुविशेषम् (अस्य) (निर्जहि) निर्गमय्य नाशय (सर्वा) सर्वाणि (अस्य) (अङ्गा) अङ्गानि (पर्वाणि) ग्रन्थीन् (वि) वियुज्य (श्रथय) शिथिलानि कुरु ॥
विषय
ब्रह्मज्य का संहार व निर्वासन
पदार्थ
१. (अस्य) = इस ब्रह्मघाती (वेदविरोधी) के (लोमानि संछिन्धि) = लोमों को काट डाल । (अस्य त्वचं विवेष्टय) = इस की त्वचा [खाल] को उतार लो। (अस्य मांसानि शातय) = इसके मांस के लोथड़ों को काट डाल। (अस्य स्नावानि संवृह) = इसकी नसों को ऐंठ दे-कुचल दे। (अस्य अस्थीनि पीडय) = इसकी हड्डियों को मसल डाल । (अस्य मज्जानम् निर्जहि) = इसकी मज्जा को नष्ट कर डाल । (अस्य) = इसके (सर्वा अङ्गा पर्वाणि) = सब अङ्गों व जोड़ों को विश्रथय ढीला कर दे- बिल्कुल पृथक्-पृथक् कर डाल। २. (क्रव्यात् अग्निः) = कच्चे मांस को खा जानेवाला अग्नि (एनम्) = इस ब्रह्मज्य को (पृथिव्याः नुदताम्) = पृथिवी से धकेल दे और उत् ओषतु जला डाले। वायुः- वायुदेव (महतः वरिम्णः) = महान् विस्तारवाले (अन्तरिक्षात्) = अन्तरिक्ष से पृथक् कर दे और (सूर्य:) = सूर्य एनम् इसको (दिवः) = द्युलोक से प्रणुदताम् परे धकेल दे और (नि ओषतु) = नितरां व निश्चय से दग्ध कर दे। इस ब्रह्मघाती को अग्नि आदि देव अपने लोकों से पृथक् कर दें।
भावार्थ
ब्रह्मघाती के अङ्ग-प्रत्यङ्ग का छेदन हो जाता है और इसका त्रिलोकी से निर्वासन कर दिया जाता है।
भाषार्थ
(सर्वा = सर्वाणि) सब (अस्य) इस के (अङ्गा = अङ्गानि) अङ्गों को, (पर्वाणि) जोड़ों को (विश्रथयः) ढीला कर दे (७१)।
टिप्पणी
[वेद, पापी को, सख्त दण्ड देने की आशा देता है। नर्म दण्ड से पापकर्मों में बार-बार प्रवृत्ति होती है। सख्त दण्ड इस प्रवृत्ति को भी रोकता और प्रजा के लिये चेतावनी का काम भी करता है]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(अस्य) उसके (लोमानि से छिन्धि) लोम लोम काट डाल। (अस्य त्वचम्) उसकी त्वचा, चमड़े को (वेष्टय) उमेठ डाल, उधेड़ ढाल। (अस्य मांसानि) इसके मांस के लोथड़ों को काट डाल। (अस्य स्नावानि) उसके स्नायुओं, नसों को (सं वृह) कचर डाल। (अस्य अस्थीनि) उसकी हड्डियों को (पीडय) तोड़ डाल। (अस्य मज्जानम्) उसके मज्जा, चर्बी को (निर्जहि) सर्वथा नाश कर डाल। (अस्य) उसके (सर्वा पर्वाणि) सब पोरू पोरू और (अङ्गा) अङ्ग अङ्ग (वि श्रथय) बिलकुल जुदा जुदा कर डाल।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवते च पूर्वोक्ते। ४७, ४९, ५१-५३, ५७-५९, ६१ प्राजापत्यानुष्टुभः, ४८ आर्षी अनुष्टुप्, ५० साम्नी बृहती, ५४, ५५ प्राजापत्या उष्णिक्, ५६ आसुरी गायत्री, ६० गायत्री। पञ्चदशर्चं षष्टं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Thus break up all parts and unscrew all the connections of his infrastructure.
Translation
All his limbs, joints unloosen.
Translation
Let her dislocate all his limbs and joints.
Translation
Dislocate all his limbs and joints
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६८-७१−(लोमानि) (अस्य) ब्रह्मज्यस्य (सम्) सम्यक् (छिन्धि) भिन्धि (त्वचम्) चर्म (अस्य) (वि) वियुज्य (वेष्टय) आच्छादय (मांसानि) मांसखण्डानि (अस्य) (शातय) शद्लृ शातने−णिच्। शदेरगतौ तः। पा० ७।३।४२। दस्य तकारो णौ परतः। खण्डय (स्नावानि) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। ष्णा शौचे−वन्। वायुवाहिनाडिभेदान् (अस्य) (सं वृह) विनाशय (अस्थीनि) (अस्य) (पीडय) मर्दय (मज्जानम्) शरीरस्थधातुविशेषम् (अस्य) (निर्जहि) निर्गमय्य नाशय (सर्वा) सर्वाणि (अस्य) (अङ्गा) अङ्गानि (पर्वाणि) ग्रन्थीन् (वि) वियुज्य (श्रथय) शिथिलानि कुरु ॥
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