अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 36
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
62
श॒र्वः क्रु॒द्धः पि॒श्यमा॑ना॒ शिमि॑दा पिशि॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठश॒र्व: । क्रु॒ध्द: । पि॒श्यमा॑ना । शिमि॑दा । पि॒शि॒ता ॥८.९॥
स्वर रहित मन्त्र
शर्वः क्रुद्धः पिश्यमाना शिमिदा पिशिता ॥
स्वर रहित पद पाठशर्व: । क्रुध्द: । पिश्यमाना । शिमिदा । पिशिता ॥८.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
यह [वेदवाणी] (पिश्यमाना) खण्ड-खण्ड की जाती हुई [वेदनिन्दक के लिये] (क्रुद्धः) क्रोध करते हुए (शर्वः) हिंसक [पुरुष के समान], और (पिशिता) खण्ड-खण्ड की गयी (शिमिदा) विहित कर्म नाश करनेवाली होती है ॥३६॥
भावार्थ
नास्तिक जन वेद का खण्डन करने के कारण आत्महिंसक और सत्कर्मनाशक हो जाता है ॥३६॥
टिप्पणी
३६−(शर्वः) शॄ हिंसायाम्−व प्रत्ययः। हिंसकः पुरुषः (क्रुद्धः) कुपितः (पिश्यमाना) पिश अवयवे। अवयवीक्रियमाणा (शिमिदा) शमु उपशमे−इन् वा ङीप्+दाप् लवने−क, टाप्। विहितकर्मनाशिका। शिमीति कर्मनाम शमयतेर्वा शक्नोतेर्वा−निरु० ५।१२। (पिशिता) अवयवीकृता ॥
विषय
अभ्युदय व नि:श्रेयस का विनाश
पदार्थ
१. (पिश्यमाना) = टुकड़े-टुकड़े की जाती हुई यह ब्रह्मगवी (क्रुद्धः शर्वः) = कुद्ध हुए-हुए प्रलंकार रुद्र के समान होती है। (पिशिता) = काटी गई होने पर (शिमिदा) = शान्ति व सुख को नष्ट करनेवाली होती है [दाप लवने]। (अश्यमाना) = खाई जाती हुई (अवर्तिः) = दरिद्रता व सत्ताविनाश का हेतु होती है और अशिता (निर्ऋति:) = खायी गई होकर पापदेवता व मृत्यु के समान भयंकर होती है। २. (अशिता ब्रह्मगवी) = खायी गई यह 'ब्रह्मगबी' (ब्रह्मज्यम्) = ज्ञान के विनाशक इस राजन्य को (अस्मात् च अमुष्मात् च) = इस लोक से और परलोक से-अभ्युदय व निःश्रेयस से (छिनत्ति) = उखाड़ फेंकती है।
भावार्थ
वेदवाणी का प्रतिरोध प्रलयंकर होता है-यह शान्ति का विनाश कर देता है, दरिद्रता व दुर्गति का कारण बनता है तथा अभ्युदय व निःश्रेयस को विनष्ट कर देता है।
भाषार्थ
(पिश्यमाना) गोमांसरूप में पीसी जाती हुई, गौ (क्रुद्धः शर्वः) क्रुद्ध और विनाशकारी रूप है, (पिशिता) और पीसी गई (शिमिदा) सत्कर्मों की जड़ काट देती है।
टिप्पणी
[गोमांस के सेवन से व्यक्ति में क्रोधवृत्ति तथा हिंस्र भावना पैदा होती, और सत्कर्म विनष्ट हो जाते हैं। क्रोध और हिंसा सत्कर्मों का विनाश करते हैं। शिमिदा = शिमि कर्मनाम (निघं० २१) + दाप् लवणे। निघण्टु में "शिमी" पाठ है]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(पिश्यमाना) जब वह एक एक अंग करके काटी जा रही होती है या दांतों से चबाइ जा रही होती है तब वह साक्षात् (क्रुद्धः शर्वः) क्रुद्ध शर्व प्रलयकारी रुद्र के समान है। (पिशिता) जब वह अंग अंग करके काटी जा चुकी या चबाई गई है तब वह (शिमिदा) उसके समस्त सुखों का नाशक भारी महामारी के समान है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Being minced, she is nature’s passion and rage bent on destroying, minced and crushed, she is destruction right up from the roots.
Translation
Sarva angered when being dressed, Simida when dressed.
Translation
When she is carved she becomes like furious Sharva the fire and when cut up she becomes uprooter of happiness.
Translation
Being anatomized it acts like a wrathful violent person. It destroys happiness when anatomized.
Footnote
Griffith translates Simida as a female demon, or a disease attributed to her influence. The word means, destroyer of noble acts and mental peace, vide Nirukta 5-12. Anatomised: Exploding of the doctrines of the Vedas.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३६−(शर्वः) शॄ हिंसायाम्−व प्रत्ययः। हिंसकः पुरुषः (क्रुद्धः) कुपितः (पिश्यमाना) पिश अवयवे। अवयवीक्रियमाणा (शिमिदा) शमु उपशमे−इन् वा ङीप्+दाप् लवने−क, टाप्। विहितकर्मनाशिका। शिमीति कर्मनाम शमयतेर्वा शक्नोतेर्वा−निरु० ५।१२। (पिशिता) अवयवीकृता ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal