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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - भुरिगार्च्येकपदानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    126

    ब्रह्म॑ च क्ष॒त्रं च॑ रा॒ष्ट्रं च॒ विश॑श्च॒ त्विषि॑श्च॒ यश॑श्च॒ वर्च॑श्च॒ द्रवि॑णं च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑ । च॒ । क्ष॒त्रम् । रा॒ष्ट्रम् । च॒ । विश॑: । च॒ । त्विषि॑: । च॒ । यश॑: । च॑ । वर्च॑: । च॒ । द्रवि॑णम् । च॒ ॥६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्म च क्षत्रं च राष्ट्रं च विशश्च त्विषिश्च यशश्च वर्चश्च द्रविणं च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्म । च । क्षत्रम् । राष्ट्रम् । च । विश: । च । त्विषि: । च । यश: । च । वर्च: । च । द्रविणम् । च ॥६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।

    पदार्थ

    (च) और (ब्रह्म) ब्राह्मण [सब में उत्तम विद्वान् और सद्गुणप्रचारक जन], (च) (क्षत्रम्) क्षत्रिय [विद्वान् चतुर शूरवीर पुरुष] (च) (राष्ट्रम्) राज्य [न्याय से प्रजापालन], (च) और (विशः) प्रजाजन, (च) और (त्विषिः) कान्ति [शरीर की आरोग्यता और आत्मबल], (च) और (यशः) यश [शूरता आदि की प्रख्याति], (च) और (वर्चः) ब्रह्मवर्चस [वेद का विचार और प्रचार], (च) और (द्रविणम्) धन [सम्पत्ति की रक्षा और वृद्धि] ॥८॥

    भावार्थ

    जो राजा के कुप्रबन्ध से वेदविद्या प्रचार से रुक जाती है, अविद्या के फैलने से वह राजा और उसका राज्य सब नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है ॥७-१०॥

    टिप्पणी

    ८−(ब्रह्म) सर्वोत्तमविद्यायुक्तं सद्गुणप्रचारकं ब्राह्मणोपलक्षणकं कुलम् (च) (क्षत्रम्) विद्याचातुर्यशौर्यवीरत्वयुक्तं क्षत्रियोपलक्षणकं कुलम् (च) (राष्ट्रम्) न्यायेन प्रजापालनम् (च) (विशः) प्रजागणाः (च) (त्विषिः) कान्तिः। शरीरनैरोग्यमात्मबलं च (च) (यशः) शौर्यादिप्रभृत्याख्यातिः (च) (वर्चः) ब्रह्मवर्चसम्। वेदस्याध्ययनं प्रचारणं च (च) (द्रविणम्) धनम्। सम्पत्तिरक्षणं वर्धनं च (च) ॥

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    विषय

    ओज व तेज आदि का विनाश

    पदार्थ

    १. (ओजः च तेज: च) = ओज और तेज, (सहः च बलं च) = शत्रुमर्षणशक्ति और बल, (वाक् च इन्द्रियं च) = वाणी की शक्ति तथा वीर्य, (श्री: च धर्म: च) = श्री और धर्म। इसीप्रकार (ब्रह्म च क्षत्रं च) = ज्ञान और बल, (राष्ट्रं च विश: च) = राज्य और प्रजा, (त्विषिः च यश: च) = दीप्ति व यश, (वर्चः च द्रविणं च) = रोगनिरोधक शक्ति [Vitality] और कार्यसाधक धन तथा आयुः च रूपं च-दीर्घजीवन व सौन्दर्य, (नाम च कीर्तिश्च) = नाम और यश, (प्राणः च अपान: च) = प्राणापानशक्ति [बल का स्थापन व दोष का निराकरण करनेवाली शक्ति], (चक्षुः च श्रोत्रं च) = दृष्टिशक्ति व श्रवणशक्ति तथा इनके साथ (पयः च रस: च) = गौ आदि का दूध और ओषधियों का रस, (अन्नं च अन्नाद्यं च) = अन्न और अन्न खाने का सामर्थ्य, (प्रातं च सत्यं च) = भौतिक क्रियाओं का ठीक समय व स्थान पर होना तथा व्यवहार में सत्यता, (इष्टं च पूर्त च) = यज्ञ तथा 'वापी, कूप व तड़ाग' आदि का निर्माण, (प्रजा च पशव: च) = सन्तान व गौ आदि पशु। २. (तानि सर्वाणि) = ये सब उस (क्षत्रियस्य) = क्षत्रिय के (अपकामन्ति) = दूर चले जाते हैं व विनष्ट हो जाते हैं जोकि (ब्रह्मगवीम् आददानस्य) = ब्रह्मगवी [वेदधनु] का छेदन करता है और (ब्राह्मणां जिनत:) = ब्राह्मण को पीड़ित करता है।

    भावार्थ

    ब्रह्मगवी का छेदन करनेवाला व ब्राह्मण को पीड़ित करनेवाला क्षत्रिय ओज व तेज आदि को विनष्ट कर बैठता है।

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    भाषार्थ

    वैदिक ज्ञान और क्षतों से त्राण करने की शक्ति, राज्य और प्रजाएं दीप्ति और यश, प्रभाव और धन ॥८॥

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (ब्राह्मणं जिनतः) ब्राह्मण पर बलात्कार करने हारे और उससे (ब्रह्मगवीम् आददानस्य) ब्रह्मगवी, ब्रह्म = वेदवाणी को बलात् छीनने वाले (क्षत्रियस्य) क्षत्रिय का (ओजः च तेजः च) ओज, प्रभाव और तेज, (सहः च बलम् च) ‘सहः’ दूसरे को पराजित करने का सामर्थ्य और बल, सेनाबल (वाक् च इन्द्रियम् च) वाणी और इन्द्रियें, (श्रीः च धर्मः च) लक्ष्मी और धर्म, (ब्रह्म च क्षत्रं च) ब्रह्मबल, ब्राह्मणगण, क्षात्रबल उसके सहायक क्षत्रिय, (राष्ट्रं च दिशः च) उसका राष्ट्र और उसके अधीन वैश्य प्रजाएं (त्विषिः च यशः च) उसकी त्विट् कान्ति दीप्ति और यश, ख्याति (वर्चः च द्रविणम् च) वर्चस्, वीर्य और धन (आयुः च रूपं च) आयु और रूप (नाम च कीर्त्तिः च) नाम और कीर्ति, (प्राणः च अपानः च) प्राण और अपान, (चक्षुः च श्रोत्रं च) चक्षु, दर्शनशक्ति और श्रोत्र, श्रवणशक्ति। (पयः च रसः च) दूध और जल (अन्नं च, अन्नाद्यं च) अन्न और अन्न के भोग करने का सामर्थ्य (ऋतं च सत्यं च) ऋत और सत्य (इष्टं च पूर्वं च) इष्ठ, पूर्त, यज्ञ याग और कूपतड़ादि धर्म के सब कार्य और (प्रजा च पशवः च) प्रजाएं और पशु (तानि सर्वाण) वे सब (अपक्रामन्ति) उसको छोड़ कर चले जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाचार्य ऋषिः। सप्त पर्यायसूक्तानि। ब्रह्मगवी देवता। तत्र प्रथमः पर्यायः। १, ६ प्राज्यापत्याऽनुष्टुप, २ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप्, ३ चतुष्पदा स्वराड् उष्णिक्, ४ आसुरी अनुष्टुप्, ५ साम्नी पंक्तिः। षडृचं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Cow

    Meaning

    And piety, and supremacy, and dominion, and economy, and brilliance, and honour, and splendour, and his entire wealth,

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    Translation

    And-holiness, and dominion, and kingdom, and Subjects, and brightness, and glory, and honor, and property;

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    Translation

    Let there be good knowledge, defensive power and military force, nation, subjects, brilliance, fame, splendor and wealth (with you) .

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    Translation

    Devotion and princely sway, kingship and people, brilliance and honor, splendor and wealth.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(ब्रह्म) सर्वोत्तमविद्यायुक्तं सद्गुणप्रचारकं ब्राह्मणोपलक्षणकं कुलम् (च) (क्षत्रम्) विद्याचातुर्यशौर्यवीरत्वयुक्तं क्षत्रियोपलक्षणकं कुलम् (च) (राष्ट्रम्) न्यायेन प्रजापालनम् (च) (विशः) प्रजागणाः (च) (त्विषिः) कान्तिः। शरीरनैरोग्यमात्मबलं च (च) (यशः) शौर्यादिप्रभृत्याख्यातिः (च) (वर्चः) ब्रह्मवर्चसम्। वेदस्याध्ययनं प्रचारणं च (च) (द्रविणम्) धनम्। सम्पत्तिरक्षणं वर्धनं च (च) ॥

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