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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    87

    सर्वा॑ण्यस्यां घो॒राणि॒ सर्वे॑ च मृ॒त्यवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑णि। अ॒स्या॒म् । घो॒राणि॑ । सर्वे॑ । च॒ । मृ॒त्यव॑: ॥७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वाण्यस्यां घोराणि सर्वे च मृत्यवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वाणि। अस्याम् । घोराणि । सर्वे । च । मृत्यव: ॥७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अस्याम्) इस [वेदवाणी] में [रोके जाने पर−मन्त्र १२] [वेदनिरोधक को] (सर्वाणि) सब (घोराणि) घोर [महाभयानक] कर्म (च) और (सर्वे) सब प्रकार के (मृत्यवः) मृत्यु होते हैं ॥१३॥

    भावार्थ

    धर्मनिरूपक वेदवाणी में रोक डालने से संसार में घोर पाप छा जाता है, और सब प्राणी महाकष्ट पाते हैं ॥१३, १४॥

    टिप्पणी

    १३−(सर्वाणि) समस्तानि (अस्याम्) वेदवाण्याम् (घोराणि) महाभयानककर्माणि (सर्वे) (च) (मृत्यवः) मरणहेतवः ॥

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    विषय

    गायत्री आवृता ब्रह्मगवी

    पदार्थ

    १. (सा एषा ब्रह्मगवी) = वह यह ब्रह्मगवी-ब्राह्मण की वाणी (आवृता) = निरुद्ध हुई-हुई (भीमा) = बड़ी भयंकर है। यह (अघविषा) = राष्ट्र में पाप के विष को फैलानेवाली है। (साक्षात् कृत्या) = यह तो स्पष्ट छेदन-भेदन [हिंसा] ही है। (कूल्बजम्) = [कु+उल दाहे+ज] यह ब्रह्मगवी का निरोध भूमि पर दाह को उत्पन्न करनेवाला है। २. (अस्याम्) = इस ब्रह्मगवी के निरुद्ध होने पर (सर्वाणि घोराणि) = राष्ट्र में सब घोर कर्म होने लगते हैं (च) = और (सर्वे मृत्यवः) = सब प्रकार के रोग उठ खड़े होते हैं। (अस्याम्) = इस ब्रह्मगवी के निरुद्ध होने पर (सर्वाणि कूराणि) = सब क्रूर कर्म होते हैं और (सर्वे पुरुषवधा:) = सब पुरुषों के वध प्रारम्भ हो जाते हैं-क़त्ल होने लगते हैं। ३. (सा) = वह (आदीयमाना) = [दाप् लवने] छिन्न की जाती हुई (ब्रह्मगवी) = ब्राह्मण की वाणी उस (ब्रह्मज्यम्) = ज्ञान का हिंसन करनेवाले, (देवपीयुम्) = देवों के हिंसक बलदृप्त राजन्य को (मृत्योः पड्बीशे) = मौत की बेड़ी में (आद्यति) = बाँधती है [आ-दो बन्धने]।

    भावार्थ

    राष्ट्र में ब्राह्मण की वाणी पर प्रतिबन्ध लगाने से राष्ट्र में पाप, हिंसा व क्रूर कर्मों का प्राबल्य हो जाता है। अन्ततः यह प्रतिबन्धक राजा भी मृत्यु के पजे में फँसता है।

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    भाषार्थ

    (अस्याम्) इस गौ अर्थात् गोजाति में (सर्वाणि घोराणि, सर्वे च मृत्यवः) सब प्रकार के घोरकर्म तथा सब प्रकार की मृत्युएं वास करती हैं।

    टिप्पणी

    [घोराणि= हन्तीति घोरम्। हन्तेरच् घुर च (उणा० ५।६४) सब प्रकार के घोरकर्म तथा सब प्रकार की मृत्युएं, गोहत्यारे राजवर्ग के गोरक्षा सम्बन्धी आन्दोलन कर्ताओं द्वारा सम्भावित हैं]।

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    ब्रह्मद्वेषी के लिये (अस्याम्) इसमें (सर्वाणि) सब प्रकार के (घोराणि) घोर, भयानक कर्म और (सर्वे च मृत्यवः) सब प्रकार के मृत्युभय विद्यमान होते हैं। (अस्याम्) इसमें (सर्वाणि क्रूराणि) सब प्रकार के क्रूरकर्म और (सर्वे पुरुषबधाः) समस्त प्रकार पुरुषों को मारने वाले हथियार अथवा सब प्रकार के पुरुषों के मारने के उपाय सम्मिलित हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Cow

    Meaning

    Then all terrors, and all deadly dangers of punitive death concentrate in this Divine Cow, nature’s retribution against suppression of universal knowledge and free speech.

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    Translation

    In her are all terrible things and all deaths,

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    Translation

    In this there are all the terrors and all the death causes.

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    Translation

    Its opposition brings all horrors and all deaths.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(सर्वाणि) समस्तानि (अस्याम्) वेदवाण्याम् (घोराणि) महाभयानककर्माणि (सर्वे) (च) (मृत्यवः) मरणहेतवः ॥

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