अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 32
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्नी गायत्री
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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अ॒घं प॒च्यमा॑ना दुः॒ष्वप्न्यं॑ प॒क्वा ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒घम् । प॒च्यमा॑ना । दु॒:ऽस्वप्न्य॑म् । प॒क्वा ॥८.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अघं पच्यमाना दुःष्वप्न्यं पक्वा ॥
स्वर रहित पद पाठअघम् । पच्यमाना । दु:ऽस्वप्न्यम् । पक्वा ॥८.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
वह [वेदवाणी] (पच्यमाना) पचायी जाती हुई [वेदनिरोधक को] (अघम्) महा दुःख, और (पक्वा) पचायी गयी (दुःष्वप्न्यम्) दुष्ट स्वप्न होती है ॥३२॥
भावार्थ
वेदविद्या का नाश करनेवाला अधर्मी होकर दिन-राति व्याकुल रहता है ॥३२॥
टिप्पणी
३२−(अघम्) महादुःखम् (पच्यमाना) पाकं नाशं गम्यमाना (दुःष्वप्न्यम्) दुष्टः स्वप्नः (पक्वा) पाकं नाशं गता ॥
विषय
अघ, अभूति, पराभूति
पदार्थ
१. यह ब्रह्मगवी (पच्यमाना) = हाँडी आदि में पकाई जाती हुई (अघम्) = पाप व दुःख का कारण होती है और पक्वा पकाई होने पर (दुःष्वप्न्यम्) = अशुभ स्वप्नों का कारण बनती है। (पर्याक्रियमाणा) = कड़छी से हिलाई-डुलाई जाती हुई मूल (बर्हणी) = मूल का ही नाश करनेवाली होती है और (पर्याकृता) = कड़छी से लोटी-पोटी गई यह ब्रह्मगवी (क्षिति:) = विनाश-ही-विनाश हो जाती है। २. (गन्धेन) = [गन्धनम् हिंसनम्] हिंसन से व पकाये जाने के समय उठते हुए गन्ध से यह (असंज्ञा) = अचेतनता को पैदा करती है। (उद्ध्रियमाणा) = कड़छी से ऊपर निकाली जाती हुई यह (शुक्) = शोकरूप होती है, उद्धता-ऊपर निकाली गई होने पर (आशीविष:) = सर्प ही हो जाती है सर्प के समान प्राणहर होती है। (उपह्रियमाणा) = पकाई जाकर परोसी जाती हुई यह (अभूति:) = अनैश्वर्य होती है। (उपहता) = परोसी हुई होकर (पराभूति:) = यह पराभव का कारण बनती है।
भावार्थ
पीड़ित की गई तथा भोग का साधन बनाई गई ब्रह्मगवी 'पाप, अशुभस्वप्न, मूलोच्छेद, विनाश, अचेतनता, शोक, अनैश्वर्य व पराभव' का कारण बनती है-सर्प के समान विनाशक हो जाती है।
भाषार्थ
(पच्यमाना) मांसरूप में पकाई जाती हुई गौ (अघम्) पाप सूचक है, (पक्वा) पकी हुई (दुःष्वप्न्यम्) बुरे स्वप्नों में दुःखदायी है।
टिप्पणी
[गौ के मांस को पकाना पाप है, और परिणाम में दुःखदायी है, दुःष्वप्न्यों के सदृश। दुःस्वप्न दुःखदायी होते हैं, क्योंकि ये भय, कम्पन देते और निद्रा के विघातक हो जाते हैं]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
ब्रह्मद्वेषी द्वारा ब्रह्मगवी (पच्यमाना) हांडी आदि में मांस अथवा भोजनादि के समान पकाई गई उसके लिये (अघम्) भयंकर पाप के समान अप्रतिकार अपराध है। और (पक्वा) पकी हुई वह (दुःष्वप्न्यम्) बुरे भयकारी स्वप्न के समान रात्रि में भी उसे सुख से नींद न लेने देनेहारी, त्रासकारिणी होती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Being cooked for pleasure and repast, she is sin, cooked and seasoned, she is an evil dream, a nightmare.
Translation
Evil when being cooked, bad dreaming when cooked.
Translation
When given to fry and frown within her she becomes sin and when she is completely in boiling troubles she is like evil dream.
Translation
It is sinful to try to spoil it. Its destruction is distressing like an evil dream.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३२−(अघम्) महादुःखम् (पच्यमाना) पाकं नाशं गम्यमाना (दुःष्वप्न्यम्) दुष्टः स्वप्नः (पक्वा) पाकं नाशं गता ॥
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