अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 30
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
71
पा॒प्माधि॑धी॒यमा॑ना॒ पारु॑ष्यमवधी॒यमा॑ना ॥
स्वर सहित पद पाठपा॒प्मा। अ॒धि॒ऽधी॒यमा॑ना । पारु॑ष्यम् । अ॒व॒ऽधीयमा॑ना ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
पाप्माधिधीयमाना पारुष्यमवधीयमाना ॥
स्वर रहित पद पाठपाप्मा। अधिऽधीयमाना । पारुष्यम् । अवऽधीयमाना ॥९.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
वह [वेदवाणी] (अधिधीयमाना) उठायी जाती हुई [वेदविरोधी के लिये] (पाप्मा) अनर्थ, और (अवधीयमाना) गिरायी जाती हुई (पारुष्यम्) [उसको] निठुराई [क्रूरतारूप] होती है ॥३०॥
भावार्थ
क्रूर वेदनिरोधक लोग अपना अनर्थ करके संसार का भी अनर्थ करते हैं ॥३०॥
टिप्पणी
३०−(पाप्मा) पापम्। अनर्थः (अधिधीयमाना) ऊर्ध्वं ध्रियमाणा (पारुष्यम्) नैष्ठुर्य्यम् (अवधीयमाना) अधोध्रियमाणा ॥
विषय
वैर......असमृद्धि......पाप......पारुष्य
पदार्थ
१. 'एक बलदस राजन्य इस ब्रह्मगवी का हनन करता है, और परिणामतः राष्ट्र में किस प्रकार का विनाश उपस्थित होता है' इसका यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार में वर्णन किया गया है। कहते हैं कि यह ब्रह्मगवी (विकृत्यमाना) = विविध प्रकार से छिन्न की जाती हुई। अपने विद्वेषियों के लिए (वैरम्) = वैर को उत्पन्न करती है, ये ब्रह्मगवी का विकृन्तन करनेवाले परस्पर वैर-विरोध में लड़ मरते हैं। (विभाज्यमाना) = अंग-अंग काटकर आपस में बाँटी जाती हुई ब्रह्मगवी (पौत्राद्यम्) = पुत्र-पौत्र आदि को खा जानेवाली होती है। (ह्रियमाना) = हरण की जाती हुई यह (देवहेति:) = इन्द्रियों [इन्द्रियशक्तियों] की विनाशक होती है, और (हृता) = हरण की गई होने पर (व्यृद्धिः) = सब प्रकार की असमृद्धि का कारण बनती है। २. (अधिधीयमाना) = इस ब्रह्मण्य द्वारा अधिकार में रक्खी हुई-पूर्णरूप से प्रतिबद्ध-सी हुई-हुई (पाप्मा) = पाप के प्रसार का हेतु बनती है, (अवधीयमाना) = तिरस्कृत करके दूर की जाती हुई (पारुष्यम्) = क्रूरताओं को उत्पन्न करती है, अर्थात् इस स्थिति में राजा प्रजा पर अत्याचार करने लगता है। (प्रयस्यन्ती विषम्) = ब्रह्मज्य द्वारा कष्ट उठाती हुई विष के समान प्राणनाशक बनती है, (प्रयस्ता) = सताई हुई होने पर यह (तक्मा) = ज्वर ही हो जाती है।
भावार्थ
ब्रह्मगवी का छेदन व तिरस्कार राष्ट्र में 'वैर, अकालमृत्यु, इन्द्रियशक्ति-विनाश, असमृद्धि, पाप व पारुष्य' का कारण बनता है और विष बनकर ज्वरित करनेवाला होता है।
भाषार्थ
(अधिधीयमाना) ऊंचाई पर रखी जाती हुई पापरूप है, और तदनन्तर उतार कर (अवधीयमाना) नीचे रखी जाती हुई (पारुष्यम्) कठोरता है।
टिप्पणी
[सुरक्षा के लिये गोमांस ऊंचे स्थान पर रखना पापवृत्ति को प्रकट करता, तथा पकाने के लिये पुनः उसे उतारना हृदय की कठोरता को प्रकट करता है]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(अधिधीयमाना) ब्रह्मद्वेषी पुरुष द्वारा अधिकार में रखी हुई ब्रह्मगवी उसके लिये तो (पाप्मा) पाप के समान है, जो उसे भविष्यत् में कष्ट का कारण होगी। (अवधीयमाना) उससे तिरस्कार को प्राप्त होती हुई ब्रह्मगवी (पारुव्यम्) उसके ऊपर कठोर दण्ड के रूप में उसको आर्थिक, शारीरिक और वाचिक कठोर दण्ड का कारण होती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Seized and possessed, she is sin, possessed and degraded, she brings reproach, squalor and violence.
Translation
Evil when being set on, harshness when being set down.
Translation
When she is possessed forcibly she is like sin and becomes a cruelity.
Translation
It brings misery when it is suppressed, and contumely when it is shown disrespect.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३०−(पाप्मा) पापम्। अनर्थः (अधिधीयमाना) ऊर्ध्वं ध्रियमाणा (पारुष्यम्) नैष्ठुर्य्यम् (अवधीयमाना) अधोध्रियमाणा ॥
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