अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 72
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्या त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
121
अ॒ग्निरे॑नं क्र॒व्यात्पृ॑थि॒व्या नु॑दता॒मुदो॑षतु वा॒युर॒न्तरि॑क्षान्मह॒तो व॑रि॒म्णः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नि: । ए॒न॒म् । क्र॒व्य॒ऽअत् । पृ॒थि॒व्या: । नु॒द॒ता॒म् । उत् । ओ॒ष॒तु॒ । वा॒यु: । अ॒न्तरि॑क्षात्। म॒ह॒त: । व॒रि॒म्ण: ॥१.११॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निरेनं क्रव्यात्पृथिव्या नुदतामुदोषतु वायुरन्तरिक्षान्महतो वरिम्णः ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नि: । एनम् । क्रव्यऽअत् । पृथिव्या: । नुदताम् । उत् । ओषतु । वायु: । अन्तरिक्षात्। महत: । वरिम्ण: ॥१.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(क्रव्यात्) मांसभक्षक [शवदाहक] (अग्निः) अग्नि (एनम्) इस [वेदनिन्दक] को (पृथिव्याः) पृथिवी से (नुदताम्) निकाल देवे, और (उत् ओषतु) जला डाले, (वायुः) वायु (महतः) बड़े (वरिम्णः) विस्तार, (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से [वैसा ही करे] ॥७२॥
भावार्थ
दुरात्मा वेदविरोधी पुरुष मूर्खता के कारण सब स्थानों में सब प्रकार से कष्ट में डाला जाता है ॥७२, ७३॥
टिप्पणी
७२, ७३−(अग्निः) प्रत्यक्षः (एनम्) वेदविरोधिनम्। ब्रह्मज्यम् (क्रव्यात्) मांसभक्षकः। शवदाहकः (पृथिव्याः) पृथिवीलोकात् (नुदताम्) प्रेरयतु (उदोषतु) सर्वथा दहतु (वायुः) (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकात् (महतः) विशालात् (वरिम्णः) विस्तारात् (सूर्यः) (एनम्) दुष्कारिणम् (दिवः) प्रकाशात् (प्रणुदताम्) प्रक्षिपतु (न्योषतु) नीचैर्दहतु ॥
विषय
ब्रह्मज्य का संहार व निर्वासन
पदार्थ
१. (अस्य) = इस ब्रह्मघाती (वेदविरोधी) के (लोमानि संछिन्धि) = लोमों को काट डाल । (अस्य त्वचं विवेष्टय) = इस की त्वचा [खाल] को उतार लो। (अस्य मांसानि शातय) = इसके मांस के लोथड़ों को काट डाल। (अस्य स्नावानि संवृह) = इसकी नसों को ऐंठ दे-कुचल दे। (अस्य अस्थीनि पीडय) = इसकी हड्डियों को मसल डाल । (अस्य मज्जानम् निर्जहि) = इसकी मज्जा को नष्ट कर डाल । (अस्य) = इसके (सर्वा अङ्गा पर्वाणि) = सब अङ्गों व जोड़ों को विश्रथय ढीला कर दे- बिल्कुल पृथक्-पृथक् कर डाल। २. (क्रव्यात् अग्निः) = कच्चे मांस को खा जानेवाला अग्नि (एनम्) = इस ब्रह्मज्य को (पृथिव्याः नुदताम्) = पृथिवी से धकेल दे और उत् ओषतु जला डाले। वायुः- वायुदेव (महतः वरिम्णः) = महान् विस्तारवाले (अन्तरिक्षात्) = अन्तरिक्ष से पृथक् कर दे और (सूर्य:) = सूर्य एनम् इसको (दिवः) = द्युलोक से प्रणुदताम् परे धकेल दे और (नि ओषतु) = नितरां व निश्चय से दग्ध कर दे। इस ब्रह्मघाती को अग्नि आदि देव अपने लोकों से पृथक् कर दें।
भावार्थ
ब्रह्मघाती के अङ्ग-प्रत्यङ्ग का छेदन हो जाता है और इसका त्रिलोकी से निर्वासन कर दिया जाता है।
भाषार्थ
(क्रव्याद् अग्नि) शवाग्नि (एनम्) इस गोघाती को (पृथिव्याः) पृथिवी से (नुदताम्) धकेले, (उद् ओषतु) जलाए और ऊपर [वायु में भेजे], (वायुः) वायु (महतो वरिम्णः, अन्तरिक्षात्) महाविस्तृत अन्तरिक्ष से धकेले, (सूर्यः) सूर्य (एनम्) इसे (दिवः) द्युलोक से (प्र नुदताम्) दूर धकेले, (न्योषतु) और तपा कर नीचे पृथिवी की ओर धकेले (मन्त्र ७२, ७३)।
टिप्पणी
[मन्त्रानुसार, सूक्ष्मशरीर समेत जीवात्मा, पृथिवी से वायु अर्थात् अन्तरिक्ष में जाता है, तदनन्तर सूर्य की ओर, फिर सूर्य के ताप से उत्पन्न मेघ से वर्षा द्वारा पुनः पृथिवी पर आ कर कर्मानुसार जन्म लेता है]।
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Let the funeral fire consume him and throw him up from earth into air with the heat of flames. Let the wind blow him out of the vast firmament over to the heights of space.
Translation
Let the flesh-eating Agni thrust him from the earth, burn up; let Vayu from the atmosphere, the great expanse, -
Translation
Let kravyed fire banish him from the earth and burn him and let Vayu, the wind drive him away from the broad and vast middle-region.
Translation
From earth let the carnivorous fire of the funeral pile drive him, let air burn him from mid-air’s broad region.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७२, ७३−(अग्निः) प्रत्यक्षः (एनम्) वेदविरोधिनम्। ब्रह्मज्यम् (क्रव्यात्) मांसभक्षकः। शवदाहकः (पृथिव्याः) पृथिवीलोकात् (नुदताम्) प्रेरयतु (उदोषतु) सर्वथा दहतु (वायुः) (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकात् (महतः) विशालात् (वरिम्णः) विस्तारात् (सूर्यः) (एनम्) दुष्कारिणम् (दिवः) प्रकाशात् (प्रणुदताम्) प्रक्षिपतु (न्योषतु) नीचैर्दहतु ॥
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