अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 16
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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मे॒निः श॒तव॑धा॒ हि सा ब्र॑ह्म॒ज्यस्य॒ क्षिति॒र्हि सा ॥
स्वर सहित पद पाठमे॒नि: । श॒तऽव॑धा । हि । सा । ब्र॒ह्म॒ऽज्यस्य॑ । क्षिति॑: । हि । सा ॥७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
मेनिः शतवधा हि सा ब्रह्मज्यस्य क्षितिर्हि सा ॥
स्वर रहित पद पाठमेनि: । शतऽवधा । हि । सा । ब्रह्मऽज्यस्य । क्षिति: । हि । सा ॥७.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(सा) वह [वेदवाणी] (हि) निश्चय करके (ब्रह्मज्यस्य) ब्रह्मचारियों के हानिकारक की (शतवधा) शतघ्नी [सैकड़ों को मारनेवाली] (मेनिः) वज्र, (सा हि) वह ही [उसकी] (क्षितिः) नाश शक्ति है ॥१६॥
भावार्थ
जो मनुष्य वेदप्रचारकों को हानि पहुँचाता है, वह संसार की हानि कर के आप भी अनेक विपत्तियों में पड़ता है ॥१६॥
टिप्पणी
१६−(मेनिः) अ० २।११।१। डुमिञ् प्रक्षेपणे−नि। वज्रः−निघ० २।२०। (शतवधा) शतघ्नी। बहुहन्त्री (हि) निश्चयेन (सा) वेदवाणी (ब्रह्मज्यस्य) म० १५। ब्रह्मचारिणां हानिकारकस्य (क्षितिः) नाशशक्तिः ॥
विषय
मेनिः + हेतिः
पदार्थ
१. (सा) = वह निरुद्ध ब्रह्मगवी (हि) = निश्चय से (शतवधा मेनिः) = सैकड़ों प्रकार से वध करनेवाला वज़ हो है। ब्रह्मण्यस्य ज्ञान का हिंसन करनेवालों की (सा) = वह (हि) = निश्चय से (क्षिति:) = विनाशिका है [क्षि क्षये] । (तस्मात्) = उस कारण से यह (ब्राह्मणानां गौ:) = ब्राह्मणों की वाणी (विजानता) = समझदार पुरुष से (वै) = निश्चय ही (दुराधर्षा) = सर्वथा दुर्जेय होती है-वह इसका घर्षण नहीं करता। २. यदि नासमझी के कारण इसका घर्षण हुआ तो (धावन्ती) = राष्ट्र में से भागती हुई यह ब्रह्मगवी (वज्रः) = वन ही होती है और (उद्वीता) = [throw, cast] बाहर फेंकी गई [निर्वासित हुई-हुई] यह ब्रह्मगवी (वैश्वानरः) = अग्नि ही हो जाती है, अर्थात् यह राष्ट्र से दूर की गई ब्रह्मगवी वज़ के समान घातक व अग्नि के समान जलानेवाली होती है। पीड़ित होने पर (शफान् उत्खिदन्ती) = [Strike] अपने शफों [खुरों] को ऊपर आहत करती हुई यह (हेति:) = हनन करनेवाला आयुध बनती है, और (अप ईक्षमाणा) = [Stand in need of] सहायता के लिए इधर-उधर देखती हुई, किसी रक्षक को चाहती हुई यह ब्रह्मगवी (महादेवः) = प्रलयंकर महादेव ही हो जाती है, अर्थात् जिस राष्ट्र में यह ब्रह्मगवी अत्याचारित होकर सहायता की अपेक्षावारली होती है, वहाँ यह प्रलय ही मचा देती है।
भावार्थ
प्रतिबन्ध को प्राप्त हुई-हुई ब्रह्मगवी राष्ट्र के विनाश का कारण बनती है।
भाषार्थ
(सा) वह गौ अर्थात् गो जाति (शतवधा मेनिः) सौ का वध करने वाला वज्र है, (सा) वह (हि) निश्चय से (ब्रह्मज्यस्य) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ ब्राह्मण को हानि पहुंचाने वाले का (क्षितिः) विनाश रूप है।
टिप्पणी
[मेनिः = मी हिंसायाम्। क्षितिः = क्षि क्षये]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(सा) वह ‘ब्रह्मगची’ ब्रह्मघ्न के लिये (शतवधा) सैकड़ों प्रकार से वध करने वाली या सैकड़ों हथियारों से युक्त (मेनिः) वज्र ही है और (सा) वह (ब्रह्मज्यस्य) ब्रह्मघाती पुरुष की (क्षितिः हि) निश्चय से क्षय करने हारी है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Then she is a hundred-fold killer, she is a terror for the violator of Divinity and tormentor of the Divine Cow.
Translation
Verily a hundred-killing weapon is she; verily the destruction of the Brahman-scather is she.
Translation
The Brahmagavi is the weapon that kills successfully hundred man and she is destruction of Brahman-killing.
Translation
It is a hundred-killing bolt. It slays the injurer of Vedic preachers.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१६−(मेनिः) अ० २।११।१। डुमिञ् प्रक्षेपणे−नि। वज्रः−निघ० २।२०। (शतवधा) शतघ्नी। बहुहन्त्री (हि) निश्चयेन (सा) वेदवाणी (ब्रह्मज्यस्य) म० १५। ब्रह्मचारिणां हानिकारकस्य (क्षितिः) नाशशक्तिः ॥
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