अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 55
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्योष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
103
क्षु॒रप॑विर्मृ॒त्युर्भू॒त्वा वि धा॑व॒ त्वम् ॥
स्वर सहित पद पाठक्षु॒रऽप॑वि: । मृ॒त्यु: । भू॒त्वा । वि । धा॒व॒ । त्वम् ॥१०.९॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षुरपविर्मृत्युर्भूत्वा वि धाव त्वम् ॥
स्वर रहित पद पाठक्षुरऽपवि: । मृत्यु: । भूत्वा । वि । धाव । त्वम् ॥१०.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
[हे वेदवाणी !] (त्वम्) तू [वेदनिन्दक के लिये] (क्षुरपविः) छुरा [कटार आदि] की धार [समान], (मृत्युः) मृत्युरूप (भूत्वा) होकर (वि) इधर-उधर (धाव) दौड़ ॥५५॥
भावार्थ
सत्य वैदिक धर्म के स्थापन में विद्वानों को सदा पूरा प्रयत्न करना चाहिये ॥५५॥
टिप्पणी
५५−(क्षुरपविः) म० २०। शस्त्रधारा यथा (मृत्युः) (भूत्वा) (वि) विविधम् (धाव) शीघ्रं गच्छ (त्वम्) ॥
विषय
छेदन.....हिंसा.....आशरविनाश
पदार्थ
१. हे (आंगिरसि) = विद्वान् ब्राह्मण की शक्तिरूप वेदवाणि! तू (ब्रह्माज्यम्) = ज्ञान के ध्वंसक दुष्ट पुरुष को (छिन्धि) = काट डाल, (आच्छिन्धि) = सब ओर से काट डाल, (प्रच्छिन्धि) = अच्छी प्रकार काट डाल। (क्षापय क्षापय) = उजाड़ डाल और उजाड़ ही डाल। २. हे आंगिरसि! तू (हि) = निश्चय से (वैश्वदेवी उच्यसे) = सब दिव्य गुणोंवाली व सब शत्रुओं की विजिगीषावाली [दिव विजिगीषायाम्] कही जाती है। (आवृता) = आवृत कर दी गई-प्रतिबन्ध लगा दी गई तू (कृत्या) = हिंसा हो जाती है, (कूल्वजम्) = [कु+उल दाहे+ज] इस पृथिवी पर दाह को उत्पन्न करनेवाली होती है। तू ओषन्ती जलाती हुई, और (सम् ओषन्ती) = खूब ही जलाती हुई (ब्रह्मणो वज्र:) = इस ब्रह्मज्य के लिए ब्रह्म [परमात्मा] का वज्र ही हो जाती है। ३. (क्षुरपवि:) = छुरे की नोक बनकर (मृत्युः भूत्वा विधाव त्वम्) = मौत बनकर तू ब्रह्मज्य पर आक्रमण कर। इन (जिनताम्) = ब्रह्मज्यों के (वर्च:) = तेज को (इष्टम्) = यज्ञों को (पूर्तम्) = वापी, कूप, तड़ागादि के निर्माण से उत्पन्न फलों को (आशिषः च) = और उन ब्रह्मज्यों की सब कामनाओं को तू (आदत्से) = छीन लेती है-विनष्ट कर डालती है।
भावार्थ
नष्ट की गई ब्रह्मगवी इन ब्रह्मज्यों को ही छिन कर डालती है। वैश्वदेवी होती हुई भी यह ब्रह्मज्यों के लिए हिंसा प्रमाणित होती है। यह उनके सब पुण्यफलों को छीन लेती |
भाषार्थ
(क्षुरपविः) छुरे के समान तीक्ष्ण वज्ररूप हुई, तथा (मृत्युः भूत्वा) मृत्युरूप होकर (त्वम्) हे गोजाति ! तू (वि धाव) विविध और दौड़।
टिप्पणी
[गो जाति के विनाशक शत्रु जो कि गोरक्षकों के साथ युद्ध के लिये एकत्रित हुए हैं (मन्त्र ५१) उन के लिये हे गोजाति ! तू क्षुरपवि तथा मृत्युरूप हो कर, विविध पार्श्वों में स्थित जो शत्रु है उन के प्रति दौड़। [यह निर्देश गोरक्षकों के लिये है कि वे दौड़-दौड़ कर शत्रुओं का सब ओर से विनाश करें]।
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Brahmagavi, razor sharp on the wheel, being death for the violator of the Brahmana’s cow, rush on and on.
Translation
Having become a keen-edged death, run thou out.
Translation
Let this device which is as sharp as razor becoming death pursue (him).
Translation
Go thou, O Vedic knowledge! becoming Death sharp! as razor’s edge, and attack thy reviler.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५५−(क्षुरपविः) म० २०। शस्त्रधारा यथा (मृत्युः) (भूत्वा) (वि) विविधम् (धाव) शीघ्रं गच्छ (त्वम्) ॥
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