अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 20
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
77
क्षु॒रप॑वि॒रीक्ष॑माणा॒ वाश्य॑माना॒भि स्फू॒र्जति ॥
स्वर सहित पद पाठक्षु॒रऽप॑वि: । ईक्ष॑माणा । वाश्य॑माना। अ॒भि। स्फू॒र्ज॒ति॒ ॥७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षुरपविरीक्षमाणा वाश्यमानाभि स्फूर्जति ॥
स्वर रहित पद पाठक्षुरऽपवि: । ईक्षमाणा । वाश्यमाना। अभि। स्फूर्जति ॥७.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(ईक्षमाणा) देखती हुई वह [वेदवाणी] [रोकनेवाले को] (क्षुरपविः) छुरा [कटार आदि] की धार [समान] होती है, (वाश्यमाना) शब्द करती हुई वह (अभि) सब ओर (स्फूर्जति) गरजती है ॥२०॥
भावार्थ
वेदवाणी के शुभ गुण प्रकट होने पर दुष्टों की दुष्टता सर्वथा नष्ट हो जाती है ॥२०॥
टिप्पणी
२०−(क्षुरपविः) शस्त्रधारा यथा (ईक्षमाणा) पश्यन्ती (वाश्यमाना) वाशृ शब्दे−शानच्। शब्दायमाना (अभि) सर्वतः (स्फूर्जति) टुओस्फूर्जा वज्रघोषे। गर्जति ॥
विषय
क्षुरपवि----शीर्षक्ति
पदार्थ
१. (ईक्षमाणा) = अत्याचरित यह ब्रह्मगवी सहायता के लिए इधर-उधर झाँकती हुई (क्षुरपवि:) = [The point of a spear] छुरे की नोक के समान हो जाती है। यह अत्याचारी की छाती में प्रविष्ट होकर उसे समास कर देती है। (वाश्यमाना) = सहायता के लिए पुकारती हुई यह (अभिस्फूर्जति) = चारों ओर मेघगर्जना के समान शब्द पैदा कर देती है। (हिङ्कृण्वती) = बंभारती हुई यह (मृत्यु:) = ब्रह्मज्य की मौत होती है। (पुच्छं पर्यस्यन्ती) = पूँछ फटकारती हुई यह ब्रह्मगवी उग्रः देवः-संहार करनेवाला काल [देव] ही बन जाती है। २. (कर्णौ वरीवर्जयन्ति) = [Tum away, avert] कानों को बारम्बार परे करती हुई यह ब्रह्मगवी (सर्वज्यानि:) = सब हानियों का कारण बनती है और (मेहन्ती) = मेहन [मूत्र] करती हुई (राजयक्ष्मः) = राजयक्ष्मा [क्षय] को पैदा करती है। (दुहामाना) = यदि यह ब्रह्मगवी दोही जाए. अर्थात् उसे भी धनार्जन का साधन बनाया जाए, तो यह (मेनि:) = वज्र ही हो जाती है और (दुग्धा) = दुग्ध हुई-हुई (शीर्षक्ति:) = सिरदर्द ही हो जाती है।
भावार्थ
ब्रह्मगवी पर किसी तरह का अत्याचार करना अनुचित है, अत्याचरित हुई-हुई यह अत्याचारी की हानि व मृत्यु का कारण बनती है। इसे अर्थप्राप्ति का साधन भी नहीं बनाना, अन्यथा यह एक सरदर्द ही हो जाती है।
भाषार्थ
(ईक्षमाणा) [घातक की ओर] दृष्टि करती हुई (क्षुरपविः) मानो छुरावज्र है, (वाश्यमाना) लड़ाई का सा शब्द करती हुई (अभि स्फूर्जति) मानो प्रत्यक्षरूप में बिजुली कड़कती है।
टिप्पणी
[वाशृ = Howl, cry, roar, Scream (आप्टे)। पविः वज्रनाम (निघं० २।२०)। घातक को देखती हुई, और उससे अपने आप को छुड़ाती हुई गौ को देख कर, गो रक्षक घातक के लिये क्षुरपवि और विद्युत्पात रूप हो जाते हैं, यह अभिप्राय प्रतीत होता है]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(क्षुरपविः) छुरे के धार के समान तीक्ष्ण होकर (ईक्षमाणा) सबको देखती है। (वाश्यमाना) घोर शब्द करती हुई (अभिः स्कूर्जति) भारी गर्जना करती है।
टिप्पणी
‘वास्यमाना’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Looking round, she is the razor’s edge, when bellowing, the roar of thunder.
Translation
Keen-edged when looking; when bellowing, she thunders at one.
Translation
When she beholds she is like sharp rezor and when her bellows seems as she is thundering.
Translation
When it sees a man who stops its spread, it acts as a sharp razor. It thunders when it preaches its doctrines.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(क्षुरपविः) शस्त्रधारा यथा (ईक्षमाणा) पश्यन्ती (वाश्यमाना) वाशृ शब्दे−शानच्। शब्दायमाना (अभि) सर्वतः (स्फूर्जति) टुओस्फूर्जा वज्रघोषे। गर्जति ॥
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