Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 5
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स यत्प्र॒तीचीं॒दिश॒मनु॒ व्यच॑ल॒द्वरु॑णो॒ राजा॑ भू॒त्वानु॒व्यचलद॒पोऽन्ना॒दीः कृ॒त्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । यत् । प्र॒तीची॑म् । दिश॑म् । अनु॑ । वि॒ऽअच॑लत् । वरु॑ण: । राजा॑ । भू॒त्वा । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलत् । अ॒प: । अ॒न्न॒ऽअ॒दी: । कृ॒त्वा ॥१४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स यत्प्रतीचींदिशमनु व्यचलद्वरुणो राजा भूत्वानुव्यचलदपोऽन्नादीः कृत्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । यत् । प्रतीचीम् । दिशम् । अनु । विऽअचलत् । वरुण: । राजा । भूत्वा । अनुऽव्यचलत् । अप: । अन्नऽअदी: । कृत्वा ॥१४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १. (सः) = वह व्रात्य (यत्) = जब (प्रतीचीं दिशं अनुव्यचलत्) = प्रत्याहार–इन्द्रियों को विषयों से व्यावृत्त करने की दिशा की ओर चला तो (वरुण:) = सब व्यसनों का निराकरण करनेवाला वह (राजा) = दीप्तजीवनवाला (भूत्वा) = होकर (अनुव्यचलत्) = अनुक्रमेण गतिवाला हुआ। २. (यः) = जो (एवं वेद) = इस तत्व को समझ लेता है कि निरव्यसन व दीप्तजीवनवाला बनने के लिए प्रत्याहार' आवश्यक है, वह (आपः) = रेत:कणों को (अनादी: कृत्वा) = अन्न खानेवाला बनाकर प्रत्याहार को सिद्ध करता है। यह (अन्नादीभिः अद्धिः अत्ति) = अन्न को खानेवाले रेत:कणों से ही अन्न को खाता है। उन्हीं सौम्य अन्नों का सेवन करता है जो रेत:कणों के रक्षण के लिए अनुकूलतावाले हों, अर्थात् यह उत्तेजक, राजस् भोजन से बचता है, राजस् भोजनों का सेवन नहीं करता।

    भावार्थ -

    हम निर्व्यसन व दीप्तजीवनवाले बनकर इन्द्रियों को विषयों से व्यावृत्त करें। उन्हीं सात्त्विक भोजनों का सेवण करें जो रेत:कणों के रक्षण के लिए हितकर हों, न राजसों, न तामसों का।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top