अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 7
आ यत्पत॑न्त्ये॒न्य: सु॒दुघा॒ अन॑पस्फुरः। अ॑प॒स्फुरं॑ गृभायत॒ सोम॒मिन्द्रा॑य॒ पात॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । यत् । पत॑न्ति । ए॒न्य॑: । सु॒ऽदुघा॑: । अन॑पऽस्फुर: ॥ अ॒प॒ऽस्फुर॑म् । गृ॒भा॒य॒त॒ । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । पात॑वे ॥९२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
आ यत्पतन्त्येन्य: सुदुघा अनपस्फुरः। अपस्फुरं गृभायत सोममिन्द्राय पातवे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । यत् । पतन्ति । एन्य: । सुऽदुघा: । अनपऽस्फुर: ॥ अपऽस्फुरम् । गृभायत । सोमम् । इन्द्राय । पातवे ॥९२.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 7
विषय - सुखसंदोहा गौओं का दूध व हृदयरोग-चिकित्सा
पदार्थ -
१. (यत्) = जब (अनपस्फुरः) = [not refusing to be milked]-न बिदकनेवाली (सुदुघाः) = सुखसंदोह्य (एन्य:) = शुभवर्ण की गौएँ (आपतन्ति) = समन्तात् गृहों की ओर आनेवाली होती है, उस समय (अपस्फुरम्) = हृदय-कम्पन को दूर करनेवाले [Throbbing, palpilation] (सोमम्) = सोम को-ताजे दूध को-(गभायत) = ग्रहण करो। यह दूध (इन्द्राय पातवे) = जितेन्द्रिय पुरुष के रक्षण के लिए होता है। २. गौवें 'सुदुघा' होनी चाहिएँ। ये अनपस्फुर होंगी तो इनके दूध में किसी प्रकार का विघ्न नहीं होगा। यह ताजा गोदुग्ध ही सोम है। यह हृदय की धड़कन को ठीक रखता है-हदय-सम्बद्ध सब रोगों से बचानेवाला है।
भावार्थ - हम सुखसंदोह्य गौओं के ताजे दूध का प्रयोग करें। यही 'सोम' है। यह जितेन्द्रिय पुरुष का रक्षण करता है-हृदय-कम्पन आदि रोगों से बचाता है।
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