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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 6
    सूक्त - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९२

    अव॑ स्वराति॒ गर्ग॑रो गो॒धा परि॑ सनिष्वणत्। पिङ्गा॒ परि॑ चनिष्कद॒दिन्द्रा॑य॒ ब्रह्मोद्य॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अव॑ । स्वा॒रा॒ति॒ । गर्ग॑र: । गो॒धा । परि॑ । स॒नि॒व॒न॒त् ॥ पिङ्गा॑ । परि॑ । च॒नि॒स्क॒द॒त् । इन्द्रा॑य । ब्रह्म॑ । उत्ऽय॑तम् ॥९२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अव स्वराति गर्गरो गोधा परि सनिष्वणत्। पिङ्गा परि चनिष्कददिन्द्राय ब्रह्मोद्यतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अव । स्वाराति । गर्गर: । गोधा । परि । सनिवनत् ॥ पिङ्गा । परि । चनिस्कदत् । इन्द्राय । ब्रह्म । उत्ऽयतम् ॥९२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    १. (गर्गरः) = युद्ध का नगारा (अवस्वराति) = अतिशयेन भयानक शब्द कर रहा है। (गोधा) = हस्तघ्न (परिसनिष्यणत्) = चारों ओर आवाज़ को फैला रहे हैं। हस्तघ्नों पर होनेवाले डोरी के प्रहारों से शब्द उठ रहे हैं। (पिङ्गा) = पिंगलवर्णवाली ज्या (परिचनिष्कदत्) = चारों ओर गति कर रही है-चारों ओर आक्रमण कर रही है। २. एवं चारों ओर युद्ध का भयंकर वातावरण है। इस युद्ध में (इन्द्राय) = उस शत्रुविद्रावक प्रभु के लिए ब्रह्म (उद्यतम्) = मन्त्रों द्वारा स्तवन उत्थित हुआ है। 'मामनुस्मर युद्ध च' के अनुसार हमारा यही कर्तव्य है कि प्रभु का स्मरण करें और युद्ध भी करते चलें। प्रभु ही तो हमें विजयी बनाएंगे।

    भावार्थ - चारों ओर भयंकर युद्ध में हम प्रभु का स्मरण करते हुए युद्ध करें। प्रभु-स्मरण से हम युद्ध में विजयी बनेंगे।

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