अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 9
सु॑दे॒वो अ॑सि वरुण॒ यस्य॑ ते स॒प्त सिन्ध॑वः। अ॑नु॒क्षर॑न्ति का॒कुदं॑ सू॒र्यं सुषि॒रामि॑व ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽदे॒व: । अ॒सि॒ । व॒रु॒ण॒ । यस्य॑ । ते॒ । स॒प्त । सिन्ध॑व: ॥ अ॒नु॒ऽक्षर॑न्ति । का॒कुद॑म् । सू॒र्म्य॑म् । स॒सु॒विराम्ऽइ॑व ॥९२.९॥
स्वर रहित मन्त्र
सुदेवो असि वरुण यस्य ते सप्त सिन्धवः। अनुक्षरन्ति काकुदं सूर्यं सुषिरामिव ॥
स्वर रहित पद पाठसुऽदेव: । असि । वरुण । यस्य । ते । सप्त । सिन्धव: ॥ अनुऽक्षरन्ति । काकुदम् । सूर्म्यम् । ससुविराम्ऽइव ॥९२.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 9
विषय - स-देव
पदार्थ -
२.हे (वरुण) = पापनिवारक प्रभो! (सु देवः असि) = आप सर्वोत्तम देव हैं-देवों के भी अधिदेव हैं। (यस्य ते) = जिन आपकी (सप्त सिन्धवः) = सात छन्दों में प्रवाहित होनेवाली ज्ञान-जल की नदियाँ (काकुदम् अनुक्षरन्ति) = हमारे तातु में बहती हैं, उसी प्रकार (इव) = जैसेकि (सूर्म्यम्) = [lustre] प्रकाश व रश्मिजाल (सुषिराम्) = सछिद्र वस्तु में प्रवेश करता है। २. हम प्रभु का स्मरण करते हैं तो प्रभु की वेदवाणियाँ हमारे जीवन में इसप्रकार प्रवेश करती हैं, जैसेकि सछिद्र भित्ति में सूर्यरश्मियाँ। ये रशिमयों ही-वेदवाणियों का प्रकाश ही हमारे जीवन को निर्मल बनाता है।
भावार्थ - हम प्रभु का स्मरण करें। प्रभु का ज्ञान हमारे जीवन को निर्मल कर देगा। वह प्रकाश हमें भी 'सुदेव' बनाएगा।
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