अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 92/ मन्त्र 19
अषा॑ढमु॒ग्रं पृत॑नासु सास॒हिं यस्मि॑न्म॒हीरु॑रु॒ज्रयः॑। सं धे॒नवो॒ जाय॑माने अनोनवु॒र्द्यावः॒ क्षामो॑ अनोनवुः ॥
स्वर सहित पद पाठअषा॑ल्हम् । उ॒ग्रम् । पृत॑नासु । स॒स॒हिम् । यस्मि॑न् । म॒ही: । उ॒रु॒ऽज्रय॑: ॥ सम् । धे॒नव॑: । जाय॑माने । अ॒नो॒न॒वु॒: । द्याव॑: । क्षाम॑: । अ॒नो॒न॒वु॒: ॥९२.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अषाढमुग्रं पृतनासु सासहिं यस्मिन्महीरुरुज्रयः। सं धेनवो जायमाने अनोनवुर्द्यावः क्षामो अनोनवुः ॥
स्वर रहित पद पाठअषाल्हम् । उग्रम् । पृतनासु । ससहिम् । यस्मिन् । मही: । उरुऽज्रय: ॥ सम् । धेनव: । जायमाने । अनोनवु: । द्याव: । क्षाम: । अनोनवु: ॥९२.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 19
विषय - द्यावः क्षामः अनोनवुः
पदार्थ -
१. (द्याव:) = द्युलोक में होनेवाले ये सूर्य व (क्षामः) = पृथिवीलोक उस प्रभु का (अनोन:) = अतिशयेन स्तवन करते है, जो प्रभु (अषाढम्) = शत्रुओं से कभी पराभूत नहीं होते, (उग्रम्) = उद्गुर्ण बलवाले व तेजस्वी हैं तथा (पृतनासु) = शत्रुसैन्यों का (सासहिम्) = पराभव करनेवाले हैं। २. (यस्मिन् जायमाने) = जिसके प्रादुर्भू होने पर (मही:) = महत्त्वपूर्ण (उरुजय:) = महान् वेगवाली, अर्थात् हमें क्रियाओं में प्रेरित करनेवाली (धेनवः) = वेदवाणीरूप गौएँ (सम् अनोन:) = सम्यक् शब्दायमान हो उठती हैं। हृदय में प्रभु का प्रकाश होने पर ये वेदवाणियाँ हमें उस-उस क्रिया में प्रेरित करनेवाली होती है। इन वेदवाणियों के रूप में ही हमें प्रभु की प्रेरणाएँ सुन पड़ती हैं।
भावार्थ - ये सूर्य आदि पदार्थ प्रभु की ही महिमा का प्रकाश हैं। हृदय में प्रभु का प्रकाश होने पर वेदवाणी हमारे लिए उत्कृष्ट कर्मों की प्रेरणा देनेवाली होती है।
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