Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 18

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 18/ मन्त्र 6
    सूक्त - मयोभूः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    न ब्रा॑ह्म॒णो हिं॑सित॒व्यो॒ऽग्निः प्रि॒यत॑नोरिव। सोमो॒ ह्य॑स्य दाया॒द इन्द्रो॑ अस्याभिशस्ति॒पाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । ब्रा॒ह्म॒ण: । हिं॒सि॒त॒व्य᳡: । अ॒ग्नि: । प्रि॒यत॑नो:ऽइव । सोम॑: । हि । अ॒स्य॒ । दा॒या॒द: । इन्द्र॑: । अ॒स्य॒ । अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपा ॥१८.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न ब्राह्मणो हिंसितव्योऽग्निः प्रियतनोरिव। सोमो ह्यस्य दायाद इन्द्रो अस्याभिशस्तिपाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । ब्राह्मण: । हिंसितव्य: । अग्नि: । प्रियतनो:ऽइव । सोम: । हि । अस्य । दायाद: । इन्द्र: । अस्य । अभिशस्तिऽपा ॥१८.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 18; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. राजा को राष्ट्र में (ब्राह्मणः न हिंसितव्यः) = ज्ञानी का हिंसन नहीं करना चाहिए। यह ज्ञानी तो (प्रियतनो: अग्निः इव) = प्रिय शरीर की अग्नि के समान है, अर्थात् शरीर में अग्नि न रहे तो जैसे वह मृत हो जाता है, उसी प्रकार ज्ञानी के न रहने पर तो राष्ट्र-शरीर मृत ही हो जाएगा। २. (सोमः) = शान्त प्रभु (ही) = निश्चय से (अस्य दायादः) = इसका बन्धु है और (इन्द्रः सर्वशक्तिमान्) = प्रभु (अस्य अभिशस्तिपा:)  = इसका हिंसा व निन्दा से रक्षक है। यह ब्राह्मण तो सोम व इन्द्र ही होता है-शान्त व शक्तिमान्। अथवा 'सोम'चन्द्रमा तथा 'इन्द्र' सूर्य के समान व्यवस्थित जीवनवाला होने से यह राष्ट्र में शन्ति और शक्ति का विस्तार करनेवाला होता है।

    भावार्थ -

    राजा को ज्ञानी ब्राह्मण पर ज्ञान-प्रसार के कार्यों में प्रतिबन्धरूप अत्याचार नहीं करना चाहिए। यह ज्ञानी तो राष्ट्र शरीर में अग्नि के समान जीवन का संरक्षक होता है। यह राष्ट्र में सोम और इन्द्र [चन्द्र-सूर्य] के समान शान्ति व शक्ति का विस्तारक होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top