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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 135

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 135/ मन्त्र 3
    सूक्त - देवता - प्रजापतिरिन्द्रश्च छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    अला॑बूनि पृ॒षात॑का॒न्यश्व॑त्थ॒पला॑शम्। पिपी॑लिका॒वट॒श्वसो॑ वि॒द्युत्स्वाप॑र्णश॒फो गोश॒फो जरित॒रोथामो॑ दै॒व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अला॑बूनि । पृ॒षात॑का॒नि । अश्व॑त्थ॒ऽपला॑शम् ॥ पिपी॑लि॒का॒ । वट॒श्वस॑: । वि॒ऽद्युत् । स्वाप॑र्णश॒फ: । गोश॒फ: । जरित॒: । आ । उथाम: । दै॒व ॥१३५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अलाबूनि पृषातकान्यश्वत्थपलाशम्। पिपीलिकावटश्वसो विद्युत्स्वापर्णशफो गोशफो जरितरोथामो दैव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अलाबूनि । पृषातकानि । अश्वत्थऽपलाशम् ॥ पिपीलिका । वटश्वस: । विऽद्युत् । स्वापर्णशफ: । गोशफ: । जरित: । आ । उथाम: । दैव ॥१३५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 135; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    अथ आजिज्ञासेन्यानां षट् प्रवादः॥ भा० - [ प्रश्न ] चारों तरफ से घिर कर भी उनमें विद्वान् किस प्रकार असक्त रहे ? उत्तर जैसे (अलाबूनि) जलों में तूम्बे। भा० - [प्र०] समस्त लोक बिन्दुओं के समान कैसे हैं ? उत्तर—जैसे (पृषातकानि) पानी में घृत के बिन्दु हो। भा०- [प्र०] जीवगण किस प्रकार परिपक्व ज्ञानवान् होकर ब्रह्म में लीन होते हैं ? उत्तर—हंडिया में चावलों के समान परिपक्व होते हैं। और (अश्वत्थपलाशम् वदामः) मुक्त होजाने में पीपल के पत्ते को हम दृष्टान्त रूप से कहते हैं। वह स्वयं पक कर टूट जाता है। भा० - [प्र०] अविद्या ब्रह्मज्ञान को छूते ही कैसे विलीन हो जाती है जैसे—(विप्रुट्) पानी की बून्द। भा० - [प्रश्न] एक चिपटना नहीं चाहता तो भी दूसरा उस को चिपट ही जाता है। कैसे ? उत्तर—(पिपीलिका वटः) जैसे कीड़ी वटबीज को। भा० - [प्र०] दुःखदायी (लोह=रोह) जन्म की लालसा मत करो। कैसे ? उत्तर – जैसे (चमसः) ‘गरम चमचा’। उसको मुख लगाने से मुख जल जाता है। उसी प्रकार दुःखदायी जन्म की अभिलाषा मत करो। त्रयः प्रतिराधानां प्रवादाः॥ भा०- (१ प्रश्न) भोक्ता होकर जीव कैसे संसार में प्रविष्ट होता है?, उत्तर—जैसे रोटी को देखकर (श्वा) कुत्ता आता है। भा०- (२ प्रश्न) शरीर से जीव किस प्रकार निकल जाता है ?, उत्तर—ऐसे जैसे (पर्णशदः=पर्णछदः) पंखों वाला पक्षी घोंसला छोड़ कर निकल भागता है। भा०- (३प्र०) दो भागों में फट कर वह कैसे स्थित है ?, उत्तर—ऐसे जैसे (गोशफः) गौ का खुर फटकर भी पृथ्वी पर जम कर पड़ा करता है। हे (ज़रितः देव) विद्वन् हम इस प्रकार (ओथाम = वदामः) उक्त प्रश्नों का प्रति वचन करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing

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