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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 136

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 14
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - उरोबृहती सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    विदे॑वस्त्वा म॒हान॑ग्नी॒र्विबा॑धते मह॒तः सा॑धु खो॒दन॑म्। कु॑मारी॒का पि॑ङ्गलि॒का कार्द॒ भस्मा॑ कु॒ धाव॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विदे॑व: । त्वा । म॒हान् । अग्नी: । विबा॑धते । मह॒त: । सा॑धु । खो॒दन॑म् । कु॒मा॒रि॒का । पि॑ङ्गलि॒का । कार्द॒ । भस्मा॑ । कु॒ । धाव॑ति ॥१३६.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विदेवस्त्वा महानग्नीर्विबाधते महतः साधु खोदनम्। कुमारीका पिङ्गलिका कार्द भस्मा कु धावति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विदेव: । त्वा । महान् । अग्नी: । विबाधते । महत: । साधु । खोदनम् । कुमारिका । पिङ्गलिका । कार्द । भस्मा । कु । धावति ॥१३६.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 14

    भावार्थ -
    विविध देशों को विजय करने हारा एवं विविध गुणों का प्रकाशक राजा, हे (महानग्नी) महासभे ! प्रजे ! (महतः) बड़े राष्ट्र के (साधु) उत्तम (खोदनम्) सुखकारी ऐश्वर्य को (वि बाधते) विविध उपायों से दूध से मक्खन के समान मथकर प्राप्त करता है। (पिङ्गलिका कुमारिका) सुन्दर रूपवती कुमारी कन्या के समान (पिङ्गलिका) तेजस्विनी सेना (कार्यं कृत्वा) अपने आवश्यक कार्य को समाप्त करके (प्र धावति) आगे बढ़ती है, उन्नत पद को प्राप्त करती है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing

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