अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 15
म॒हान्वै॑ भ॒द्रो बि॒ल्वो म॒हान्भ॑द्र उदु॒म्बरः॑। म॒हाँ अ॑भि॒क्त बा॑धते मह॒तः सा॑धु खो॒दन॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हान् । वै । भ॒द्र: । बि॒ल्व: । म॒हान् । भ॑द्र: । उदु॒म्बर॑: ॥ म॒हान् । अ॑भि॒क्त । बा॑धते । मह॒त: । सा॑धु । खो॒दन॑म् ॥१३६.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
महान्वै भद्रो बिल्वो महान्भद्र उदुम्बरः। महाँ अभिक्त बाधते महतः साधु खोदनम् ॥
स्वर रहित पद पाठमहान् । वै । भद्र: । बिल्व: । महान् । भद्र: । उदुम्बर: ॥ महान् । अभिक्त । बाधते । महत: । साधु । खोदनम् ॥१३६.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 15
विषय - राजा, राजसभा के कर्तव्य।
भावार्थ -
(बिल्वः) शत्रु को भेदने में समर्थ (महान्) बड़ा पुरुष ही (भद्रः) प्रजा को कल्याणसुख का देने वाला होता है। इसी प्रकार (उदुम्बरः) भारी बलवान् पुरुष भी (भद्रः) प्रजा को सुखकारी है। (महान्) बड़ा पुरुष ही (महत्) बड़े राष्ट्र के (साधु) उत्तम (खोदनम्) ऐश्वर्य को (अभितः) सब प्रकार से (बाधते) लेना चाहता है और उसको भोगता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
इस भाष्य को एडिट करें